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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ४५
और प्रसारित होता रहा । पिंडवाड़ा के महावीर मन्दिर में १४०८ ई० के अभिलेख में वर्णन मिलता है कि राजकुमार सोहज के शासनकाल में स्थापना की गई थी ।'
वर्द्धमान की प्रतिमा की
आबू देलवाड़ा के पित्तलहर मन्दिर के १४६८ ई० के लेख में "श्री अर्बुद गिरी देवड़ा श्री राजधर सागर श्री डूंगरसिंह राज्य " अंकित है, जिससे इस क्षेत्र में राजनीतिक उथल-पुथल होने का आभास होता है, क्योंकि ये नाम इस काल की सिरोही की राज्य - परम्परा से मेल नहीं खाते । १४५८ ई० के खर्तरवसहि मन्दिर के लेख के सन्दर्भ में, इस समय यहाँ राणा कुम्भा का राज्य होना चाहिये । 3 आबू रोड स्टेशन से तीन मील दूर ऋषभ मन्दिर में प्रस्तर पर उत्कीर्ण अभिलेख से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि १५४२ ई० में रायसिंह के शासनकाल में ऋषभ आश्रम का निर्माण रायमल ने करवाया था । १५४६ ई० में दुर्जन साल के राज्यकाल में लच्छलदे" और तेज -- पाल ६ की स्मृति में दो मूर्तियाँ बनवाई गई थीं । तेजपाल द्वारा निर्मित मूर्ति १५६५ ई० में बनी थी । इसी प्रकार पिंडवाड़ा के महावीर मन्दिर में बाई गौरांगदे और लक्ष्मीकी स्मृति में दो मूर्तियाँ निर्मित हुई थीं । अकबर के निमन्त्रण पर फतेहपुर सीकरी जाते समय हीरविजय सूरि सिरोही में रुके थे, जहाँ उनका स्वागत राजा सुरताण सिंह के द्वारा किया गया था । इस अवसर पर राजा ने शराब न पीने, आखेट न करने, मांस न खाने एवं अनियमित सेक्स जीवन व्यतीत न करने की प्रतिज्ञा ली थी । सूरि जी के उपदेशों से उसने कुछ कर भी समाप्त कर दिये थे । सिरोही के मन्दिर के अभिलेख से ज्ञात होता है कि नगर का चतुर्मुख जैन मन्दिर १५७७ ई० में सुरताण सिंह के पुत्र महाराजा राजसिंह के शासनकाल में निर्मित हुआ था । १०
सिरोही क्षेत्र में मध्यकाल में विपुल जैन साहित्य का सृजन हुआ । नागेन्द्र गच्छ के उदयप्रभ सूरि ने आबू में "धर्माभ्युदय" महाकाव्य,
१. एरिराम्यूअ, १९०९-१०, क्र० ३ ।
२. अप्रलेस, सं० ४०७, पृ० १६१ ।
३. वही, सं० ४४१, पृ० १७३ ।
४. एरिराम्यूअ, १९२४-२५, क्र० ११० ।
५. अप्रजैलेस, क्र० ३७९ ।
६. वही, क्र० ३८० ।
७. वही, क्र० ३८३ ।
८. वही, क्र० ३८३-८४
९. सूरीश्वर और सम्राट् अकबर, पृ० १८८ |
१०. अप्रजैलेस, क्र० २५० ।
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१२३३ ई० में १२३० ई० में
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