________________
४४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
यहीं के एक १२७६ ई० के प्रस्तर लेख में पद्मनन्दी के एक शिष्य का उल्लेख मिलता है।' नगर की नौ निषेधिकाओं में से अधिकांश १३वीं से १६वीं शताब्दी तक की हैं । "सिद्ध चक्र कथा" ग्रन्थ की प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि जब यह ग्रन्थ नैनवां में १४५८ ई० में लिखा गया था, तब वहाँ मालवा के सुल्तान अलाउद्दीन का राज्य था । झालावाड़ क्षेत्र के बकानी ग्राम में आदिनाथ की १४८८ ई० की प्राचीनतम प्रतिमा उपलब्ध है । झालरापाटन के शान्तिनाथ जैन मन्दिर में कुछ प्रतिमाएँ १४३३ ई० से १५६३ ई० तक की हैं, जिनकी प्रतिष्ठा बलात्कारगण के ईडर शाखा के विभिन्न भट्टारकों ने करवाई थी। १४वीं शताब्दी में, मुस्लिम सेनाओं द्वारा शांतिनाथ मंदिर ध्वस्त होने के बाद कोटा के महाराव उम्मेदसिंह के शासनकाल में इसका पुननिर्माण हुआ था। ( ४ ) सिरोही राज्य में जैन मत : ____ अर्बुद मण्डल का यह प्रदेश प्राचीन परम्पराओं के अनुसार जैन मत का समृद्ध व उत्कर्षशील केन्द्र रहा है। मुस्लिम आक्रमणों एवं विध्वंस के बावजूद जैनाचार्यों की प्रेरणा व राजकीय संरक्षण से मन्दिरों का जीर्णोद्धार होता रहा और यह क्षेत्र जैन धर्म को समृद्ध बनाता रहा । धनारी के जैन मन्दिर के १२९१ ई० के लेख में परमार वंश के नये राजा सालासुत जैतमाल का नाम है। सम्भवतः यह लेख मन्दिर के जीर्णोद्धार से सम्बन्धित है। सिरोही क्षेत्र के वधिना के शान्तिनाथ मन्दिर के १३०२ ई० के लेख में महाराज सामन्त देव सिंह के कल्याणविजय राज्य में, शान्तिनाथ देव की यात्रा महोत्सव के निमित्त कुछ सोलंकियों द्वारा सामूहिक रूप से गाँव, खेत और कुए के हिसाब से कुछ अनुदान की व्यवस्था का उल्लेख है।" जूना, बाड़मेर से प्राप्त १२९५ ई० के आदिनाथ मन्दिर के लेख में भी सामन्तसिंहदेव का उल्लेख है । इस लेख में मन्दिर की व्यवस्था के निमित्त कुछ करों का उल्लेख है। १३३२ ई० के "कालन्द्री अभिलेख" से ज्ञात होता है कि एक सम्पूर्ण संघ ने यहां आमरण उपवास किया था। इस प्रकार अमरत्व प्राप्त करने वाले सभी लोगों के नाम इस अभिलेख में हैं। यह वर्णन १४वीं शताब्दी में जैन धर्म और इसके सिद्धान्तों के प्रति लोगों की निष्ठा और आस्था का प्रमाण है । सिरोही के शासकों के राज्यकाल में जैन धर्म निरन्तर प्रवद्धित १. वरदा, १४, पृ० २२-२५ । २. यह ग्रन्थ जयपुर के बिरधीचन्द जैन मन्दिर के शास्त्र भण्डार में संग्रहीत है। ३. जैरा, पृ० १५३ । ४. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, पृ० २५३ । ५. नाजैलेस, भाग १, क्र० ९५९ । ६. वही, क्र० ९१८, पृ० २४४ । ४७. जैइरा, पृ० ३७ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org