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________________ ४२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म १४६४ ई० में दुष्काल के समय वह प्रतिदिन २००० लोगों को भोजन करवाता था।" उसने गिरिपुर के पाश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा अपने पिता द्वारा निर्मित आंतरी के मंदिर में एक मण्डप और देवकुलिका का निर्माण करवाया। उसने वहां पर मरुदेवी की एक गजारूढ़ प्रतिमा भी बनवाई। इस पुननिर्मित मंदिर का प्रतिष्ठा-समारोह १४६८ ई० में सोमविजय सूरि के द्वारा सम्पन्न करवाया गया था। उसने अपने जन्म स्थान डूंगरपुर से ५ मील दूर थाना में एक जैन मंदिर का निर्माण कार्य भी प्रारम्भ करवाया, जो पूर्ण नहीं हो सका।२ साहित्यिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि "सिद्ध-हेम-बृहद वृत्ति अष्टम", "श्री सुकमालस्वामी चरित्र", और "काव्य-कल्पलताकवि-शिक्षावृत्ति" नामक ग्रन्थ-रावल सोमदास के शासनकाल में हो लिखे गये थे। इनके काल का एक जैनाचार्य का स्मारक भी उपलब्ध है।४ इन्हीं के राज्यकाल में १४६२ ई० और १४७३ ई० में कतिपय जैन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह भी सम्पन्न हुआ था।५ रावल सोमदास के पुत्र गंगदास थे व गंगदास के उत्तराधिकारी उदयसिंह हुए। बाँसवाड़ा राज्य के नौगामा में शांतिनाथ जैन मंदिर की दीवार पर उत्कीर्ण १५१४ ई० के शिलालेख में उल्लेख है कि यह राजा उदयसिंह के शासनकाल में हुम्मड़ जाति के दोशी चम्पा के पुत्र और पौत्रों के द्वारा निर्मित करवाया गया था । परवर्ती काल में भी जैन मत यहाँ निरन्तर उन्नतिशील रहा, जो पश्चातवर्ती काल में यहाँ खोजी गई प्रतिमाओं से प्रमाणित होता है । प्रतापगढ़ राज्य में भी जैन धर्म उन्नतिशील स्थिति में था, जिसका प्रमाण १४वीं व १५वीं शताब्दी की देवली, झाँसदी और प्रतापगढ़ के जैन मंदिरों की प्रतिमाओं के लेखों से स्पष्ट होता है। देवलो के जैन मंदिर में पीतल की प्रतिमा के पृष्ठ पर उत्कीर्ण १३१६ ई० के अभिलेख में, धन्धलेश्वर वातक कस्बे के निवासी श्रीमालजातीय ठाकुर खेताक के द्वारा पार्श्वनाथ की प्रतिमा अपने पिता ठाकुर फम्पा और माता हाँसला. देवी के आध्यात्मिक कल्याण के निमित्त स्थापित करवाने का उल्लेख है। १. एरिराम्यूअ, १९२५-२६, क० ८। २. ओझा-डूंगरपुर राज्य, पृ० ५८ । ३. श्री महारावल अभि० ग्रन्थ, पृ० ३९९ । ४. एरिराम्यूअ, वर्ष १९१६-१७ । ५. ओझा-डूंगरपुर राज्य, पृ० ७०-७१ । ६. एरिराम्यूअ, १९१६-१७, क्र० ५। ७. वही, १९१४-१५ । ८. वही, पृ० १९२१-२२ । ९. वही, १९२१-२२, क्र० ६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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