SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ४१ है। मेवाड़ में, धुलेव में स्थित केसरियाजी की प्रतिमा, मूलतः इस स्थान से ही ले जाई गई थी। डूंगरपुर से लगभग आठ मील दूर "उपर", नामक ग्राम के, दिगम्बर जैन आम्नाय के श्रेयांसनाथ मन्दिर की १४०४ ई० की प्रशस्ति में, दिगम्बर आम्नाय के काष्ठा संघ और नन्दितटगच्छ के आचार्यों की परम्परा, मन्दिर निर्माण-कर्ता नरसिंह'पुरा जाति के प्रह्लाद के पूर्वजों एवं भाइयों के नाम, डूंगरपुर के रावल प्रतापसिंह तथा रत्नकीर्ति के उपदेश से मन्दिर बनवा कर ५२ मूतियाँ स्थापित करने का उल्लेख है। डूगरपुर का प्राचीन नाम "गिरिवर" था, जिसकी स्थापना लगभग १३५८ ई० में हुई थी। १३७० ई० में जयानंद विरचित "प्रवास गीतिकात्रय" से ज्ञात होता है कि यहाँ पर पाँच जैन मंदिर और लगभग ९०० जैन परिवार निवास करते थे । रावल प्रतापसिंह के उत्तराधिकारी गजपाल के शासन में भी जैन मत प्रगतिशील रहा। इनके शासनकाल की चार हस्तलिखित प्रतियाँ उपलब्ध हैं, जो इस प्रकार हैं१४२३ ई० की "पंच प्रस्थान विषम पद व्याख्या", १४२८ ई० की "द्वयाश्रय महाकाव्य सटीक", १४२९ ई० का "द्वितीय खण्डग्रंथाग्रत्रियसकल ग्रन्थ" और १४३० ई० का "कथाकोष" । आन्तरी के जैन मंदिर की दीवार के १४६९ ई० के अभिलेख से यह स्पष्ट है कि अमात्य सांभा ने शांतिनाथ मंदिर निर्मित करवाया था एवं १४३८ ई० में आँतरी में एक भिक्षागृह भी बनवाया था। इस मंदिर में उसने शांतिनाथ को पीतल को प्रतिमा स्थापित करवाई थी। गजपाल के पश्चात् उसका पुत्र सोमदास शासक हुआ। माउंटआबू में अचलगढ़ में आदिनाथ की पीतल की प्रतिमा के १४६१ ई० के लेख में इस प्रतिमा के डूंगरपुर में रावल सोमदास के शासनकाल में निर्मित होने का उल्लेख है । यह मूर्ति तपागच्छ संघ द्वारा आबू में लाई गई थी तथा सांभा ने अपनी पत्नी करणादे और पुत्रों साल्हा और माल्हा के साथ मिलकर स्थापित करवाई, जिसका प्रतिष्ठा समारोह तपागच्छ के लक्ष्मीसागर सूरि के द्वारा सम्पन्न हुआ था।' सांभा के पश्चात् उसका पुत्र साल्हा सोमदास का अमात्य बना, जिसने उदारता पूर्व दान दिये । १. ओझा-डूगरपुर राज्य, पृ० १ । २. वही, पृ० १५ । ३. राइस्त्रो , पृ० १२९ । ४. ओझा-मेवाड़ राज्य, पृ० ४२ । ५. एरिराम्यूअ, १९१५-१६ । ६. वही। १७. श्री महारावल अभि० ग्रन्थ, पृ० ३९८ । ८. एरिराम्यूअ, १९२९-३०, क्र० ३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy