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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : ३५ थे। जिनप्रबोध १२७७ ई० के आसपास जब चित्तौड़ में आये, तब राज्य के ब्राह्मणों, संन्यासियों, राजपुत्र क्षेत्रसिंह और कर्णराज, सभी ने इनका भव्य स्वागत किया था । १२७७ ई० में उत्कीर्ण, चित्तौड़ में नवलख भण्डार की दीवार के लेख में, रत्नसिंह श्रावक के द्वारा निर्मित शांतिनाथ के चैत्य में, समदा के पुत्र महण सिंह की भार्या साहिणी की पुत्री कुमारिला श्राविका के, पितामह पूना और मातामह धाडा के श्रेयार्थ, देवकूलिकाएँ बनवाने का उल्लेख है । ___मेवाड़ के शासक समरसिंह और उनकी माता जयतल्ला देवी, देवेन्द्र सूरि के उपदेशों से प्रभावित होकर उनके भक्त बन गये थे। चित्तौड़ के १२७८ ई० के लेख से सूचना मिलती है कि भरतरिपुरीय गच्छ के जैनाचार्य के उपदेश से, राजा तेजसिंह की रानी जयतल्ला देवी ने चित्तौड़ में एक श्याम पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया। इसमें यह भी उल्लेख है कि इसी मंदिर के पृष्ठ भाग में उसी गच्छ के आचार्य प्रद्युम्न सूरि को महारावल समरसिंह ने मठ के लिये भूमिदान दिया। लेख में यह भी वर्णित है कि इस मंदिर के लिये चित्तौड़ की तलहटी, आहड़, खोहर और सज्जनपुर की मंडपिकाओं से कई द्रम घी, तेल आदि वस्तुओं के मिलने की व्यवस्था की गई। मुहिल राजा समरसिंह के काल के अन्य अभिलेख में वर्णित है कि भरतरिपुरिय गच्छ के जैन मंदिर को भी कुछ भमि अपनी माता के आध्यात्मिक कल्याण हेतु प्रदान की गई थी तथा इस दान की प्रेरणा साध्वी सुमला के धार्मिक उपदेशों से, जयतल्ला देवी को हुई थी। इसके अतिरिक्त सूरि जी के उद्बोधन से समरसिंह ने एक अध्यादेश जारी कर, अपने राज्य में प्राणी हिंसा का निषेध करवा दिया था। उक्त अध्यादेश में जनता से शराब का त्याग तथा धर्म और न्याय के नियमों का कठोरता से पालन करने की भी अपेक्षा की गई थी। गम्भीरी नदी के पुल में ही प्रयुक्त, १२७३ ई० के एक शिलालेख में उल्लेख है कि रावल समरसिंह ने भरतरिपुरीय गच्छ के आचार्यों को पोषधशाला के निमित्त कुछ भूमि दी तथा अपनी माता के द्वारा निर्मित मंदिर के लिये हाट तथा बाग की भूमि भी दान में दी थी। चित्तौड़ की तलहटी एवं सज्जनपुर की मंडपिकाओं से कुछ द्रम अनुदान के रूप में दिये जाने को भी आज्ञा दी। रतनपुर के १२८६ ई० के जैन मंदिर के एक लेख में, महणदेवी द्वारा द्रमों का दान एवं उनके ब्याज से जैनोत्सव मनाने का उल्लेख है।'
१. जैसासइ, पृ० १९३ । २. खबृगु, पृ०.५६ । ३. राइस्त्रो, पृ० ११३ । ४. एइ, ११, पृ० ३०-३२ । “५. एरिराम्यूअ, १९२२-२३, क्र०९। ६. ओझा-उदयपुर राज्य, १, पृ० १७८ । ७. नाजैलेस, २, क्र० १७०६, पृ० १६३ ।
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