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३० : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं
शताब्दी के चित्तौड़ से प्राप्त एक खंडित लेख में खुमाण वंश के राजा जैत्र सिंह का उल्लेख है ।" इस लेख में चित्तौड़ के प्रावाट यशोनाग के वंश का वर्णन तथा चाहमान, परमार तथा गुर्जरों द्वारा पूजित, आचार्य शुभचन्द्र का भी वर्णन है । इस लेख की रचना संस्कृत भाषा में शुभकीर्ति ने, जैन मंदिर के निर्माण के समय की थी । "
(८) दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में जैन धर्म :
वर्तमान में कोटा बून्दी और झालावाड़ क्षेत्र में जैन धर्म का अस्तित्व प्राचीन काल से माना जाता है। कोटा के निकट, केशोराय पाटन में गुप्तकाल में भी जैन मंदिर के अस्तित्व की संभावना मानी गई है । वस्तुतः यह क्षेत्र प्रारम्भ से ही जैन धर्म की गति'विधियों का केन्द्र रहा । कुछ समय पूर्व ही दरा ( कोटा ) में दूसरी शताब्दी ईस्वी पूर्व के लेख खोजे गये हैं । एक अभिलेख में आवर ( मंदसौर) निवासी श्रमण सिल्पीसेन का - संदर्भ है । द्वितीय अभिलेख में कलाविद आपभसेन का नामोल्लेख है स्पष्ट है कि ईसा से दूसरी शताब्दी पूर्व, यहाँ कतिपय श्रमण निवास या विचरण करते होंगे । किन्तु इस क्षेत्र में जैन धर्म के अस्तित्व का निश्चित प्रमाण, शेरगढ़ से प्राप्त ७९० ई० के अभिलेख हैं ।" इस क्षेत्र में कई प्राचीन जैन मंदिरों के अवशेष प्राप्त होते हैं, जिनमें अटरू, बारां, शेरगढ़, झालरापाटन, रंगपट्टन, केशोरायपाटन, भीमगढ़, कांकोणी, केलवाड़ा आदि महत्वपूर्ण हैं, किन्तु इन मंदिरों में अभिलेख बहुत कम उपलब्ध होते हैं । अटरू में १०वीं शताब्दी के दो जैन मंदिर ध्वस्त अवस्था में हैं । इस क्षेत्र में कई प्रतिमाएँ खोजी गई हैं, जो कोटा संग्रहालय में रखी हुई हैं, इनमें से दो प्रतिमाओं पर परमार नरवर्मा के शासनकाल के अभिलेख अंकित हैं । ६ ११०८ ई० के प्रतिमा लेख में शुभंकर के शिष्य, लोकनंदी के उपदेश से श्रेष्ठी सहदेव द्वारा चतुर्विंशति मूल पट्ट स्थापित करने का उल्लेख है । " दूसरी प्रतिमा, अग्रवाल जिनपाल के पुत्र रामदेव के द्वारा स्थापित की गई थी । 'कोटा संग्रहालय' की १०वीं शताब्दी की एक पार्श्वनाथ प्रतिमा के लेख में "श्री सर्वनंद्याचार्य - और श्रावका - नंदि विहार" उल्लिखित है ।" पद्मनंदि ने " जम्बूद्वीपपण्णत्ति" बारों में ही लिखी । इस कृति से ज्ञात होता है कि बारों में कई जैन मंदिर एवं बहुसंख्यक श्रावक
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१. नाजैलेस, क्र० ११३, १०५२ ।
२. राइस्त्रो, पृ० ७७ ।
३. जैड़रा, पृ० १११ ।
४. वरदा, २१, सं० ४, पृ० ३-४ ।
५. इए, १४, पृ० ४५ ।
. ६ वरदा, जि० १६, सं० २, पृ० ३४ । ७. वही ।
-८. वही ।
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