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जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : २७. जैन धर्मावलम्बी विदित होता है।' हस्तिकुण्डी से प्राप्त ९९६ ई० के, सूर्याचार्य विरचित प्रशस्ति लेख से ज्ञात होता है कि वासुदेवाचार्य के उपदेश से प्रभावित होकर हरिवर्मन के पुत्र, विदग्धराज ने हस्तिकुण्डी में एक जैन देवालय का निर्माण करवाया था। उसकी धर्मनिष्ठा का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रमाण, संसार से विरक्त होना तथा अपने पुत्र बालाप्रसाद को राज्य भार सौंप देना था। इस प्रशस्ति में जैन मन्दिर के लिये राजकीय अनुदान देने की पद्धति तथा सभी धर्मावलम्बियों द्वारा उसमें योगदान देने की प्रवृत्ति, उस युग की धर्म सहिष्णुता के द्योतक हैं।विदग्ध के पुत्र मम्मट ने भी इस मन्दिर को कुछ दान दिये थे। मम्मट के पुत्र धवल ने, अपने पितामह द्वारा निर्मित इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया तथा जैन धर्म की कीर्ति स्थापित करने हेतु सभी प्रकार के प्रयत्न किये । हस्तिकुंडी की गोष्ठी ने इस मन्दिर को पुनः निर्मित करवाया था, तत्पश्चात् वासुदेवाचार्य के शिष्य, शान्तिभद्र के हाथों, १०५३ ई० में प्रतिमा को प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई थी, जिसमें कुछ जैन श्रावकों ने भी सहयोग प्रदान किया था । इन राठौड़ शासकों का स्वर्ण से तुलकर, उसे गरीबों में वितरित करवाने के भी उल्लेख मिलते हैं । (६) शूरसेन राजवंश के अन्तर्गत जैन धर्म :
आधुनिक भरतपुर रियासत के क्षेत्रों पर प्राचीन काल में, ६वीं से १२वीं शताब्दी तक शूरसेन राजवंश ने शासन किया था। इनके शासनकाल में भी जैन धर्म की तगप्रि के कई प्रमाण उपलब्ध होते हैं। विभिन्न शासकों ने जैन मत को संरक्षण प्रदान कर कई मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। कई जैनाचार्य समय-समय पर इस क्षेत्र में आते रहे।
शूरसेन जनपद की प्राचीन राजधानी मथुरा, जैन धर्म की प्रसिद्ध केन्द्र थी। मुस्लिम विध्वंस के कारण अब अधिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होते हैं, पर भरतपुर क्षेत्र में जैन धर्म से संबद्ध उल्लेख १०वीं शताब्दी से मिलते हैं, किन्तु इस क्षेत्र से खोजी गई, एक आदिनाथ सर्वतोभद्र प्रतिमा से प्रमाणित होता है कि यहाँ जैन मत गुप्तकाल या उससे पूर्व भी अस्तित्व में था। मेवाड़ के राजा अल्लट ने समकालीन प्रद्युम्न सूरि को, सपादलक्ष एवं त्रिभुवनगिरि के राज दरबारों में सम्मानित किया था। प्रद्युम्न सूरि के शिष्य, अभयदेव सूरि ने, धनेश्वर सूरि को जैन साधु होने की प्रेरणा दी थी । धनेश्वर सूरि 'त्रिभुवनगिरि १. जैहरा, पृ० २७ । २. नाजैलेस, भाग १, क्र० ८९८, पृ० २३३-२३८ । ३. वही। ४. वही । ५. वही। ६. पीटरसन्स रिपोर्ट स ३, पृ० १५८-१६२ ।
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