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४५८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
(ङ) नेमिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार :
यह नगर का सबसे महत्त्वपूर्ण शास्त्र भण्डार है । यहाँ २२३ हस्तलिखित ग्रन्थ संग्रहीत हैं । इस भण्डार में नरसी के पुत्र गोकुल कृत 'माघवानल प्रबन्ध' कृति की १५९८ ई० में तैयार की गई अच्छी प्रतिलिपि है । इसके अलावा 'श्रेणिक चरित्र', डालूराम कृत 'चतुर्गति नाटक', विमलकोति कृत 'आराधनासार', श्रीधर कृत 'भागवत पुराण' आदि के नाम भी उल्लेखनीय हैं । यहाँ एक गुटके में १६वीं शताब्दी के विद्वान् बूचराज की कई छोटी-छोटी रचनाएँ प्राप्त हुई हैं ।
(च) स्थानकवासी शास्त्र भण्डार :
यहाँ के स्थानक में भी कुछ हस्तलिखित ग्रंथ हैं, जिनकी संख्या अज्ञात है एवं सूचीकरण भी नहीं है ।
३. नैणवा के शास्त्र भण्डार :
भट्टारक सकल कीर्ति के गुरू पद्मनन्दि का नैणवा प्रमुख स्थान था । १७१६ ई० में केशवसिंह कवि ने 'भद्रबाहु चरित' की यहीं पर रचना की थी । इस नगर के जैन मन्दिरों में शास्त्र भण्डार हैं ।
(क) दिगम्बर जैन मन्दिर बघेरवाल का शास्त्र भण्डार :
इस भण्डार में १०४ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । यहाँ के एक गुटके में कई अज्ञात रचनाओं का संग्रह है । कुछ रचनाएँ इस प्रकार हैं- भट्टारक सकलकीर्ति कृत 'सार सीखा मणि रास', ब्रह्म यशोधर कृत 'नेमिराजमति गोत', जिनसेन कृत 'पंचेंद्रिय गीत', सिंहदास कृत 'नेमिराजमती वेलि', ब्रह्म यशोधर कृत 'वैराग्य गीत' आदि लगभग ९६ छोटी-छोटी रचनाएँ संग्रहीत हैं । यह गुटका १५७८ ई० में रणथम्भौर में लिखा
गया था ।
(ख) दिगम्बर जैन तेरापंथी मन्दिर का शास्त्र भण्डार :
इस भण्डार में ८० हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । अधिकांश हिन्दी, संस्कृत कृतियाँ पुराण, पूजा, कथा एवं चरित्र सम्बन्धी हैं । भट्टारक जगत्कीर्ति के शिष्य लालचन्द कृत 'सम्मेद शिखर पूजा' की प्रति सबसे महत्त्वपूर्ण है जो उन्होंने रेवाड़ी में १७८७ ई० में लिखी थी । इसके अलावा १६वीं एवं १७वीं शताब्दी के कपड़े पर लिखे हुए ३ यंत्र विशेष महत्त्व के हैं । १५२८ ई० में रचित ऋषिमंडल यंत्र सबसे प्राचीन है ।
(ग) दिगम्बर जैन मन्दिर अग्रवाल का शास्त्र भण्डार :
इसके कुल ३७ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं एवं विशेष उल्लेखनीय कोई ग्रन्थ नहीं है । ४. दिगम्बर जैन मन्दिर शास्त्र भण्डार, डबलाना :
इस भण्डार में ४२३ ग्रन्थ संग्रहीत हैं । भण्डार में काव्य, चरित्र, कथा, रास
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