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________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : २५ के पश्चात राजनीतिक अस्थिरता के कारण, जैनधर्म की सतत प्रगति कुछ अवरुद्ध अवश्य हुई, किन्तु जैनाचार्यों एवं जैन राजनयिकों के प्रभाव से जैनमत निरन्तर 'विकासोन्मुख रहा। जैन धर्म ने विमल, वस्तुपाल एवं तेजपाल जैसे महान मंत्रियों के नेतृत्व में अत्यधिक उन्नति की। ये महान् श्रावक अपने धर्म के प्रसारार्थ हमेशा तत्पर एवं उत्साही रहे । चालुक्य शासक भीम प्रथम ने विमल को अपना प्रान्तीय शासक नियुक्त किया था। इसने भीम एवं धंधुक के मध्य मैत्री स्थापित करवाई तथा धंधुक के आदेश से १०३२ ई० में आबू में आदिनाथ के एक सुन्दर, भव्य एवं विशाल मन्दिर का निर्माण करवाया। वस्तुपाल एवं तेजपाल पहले भीम द्वितीय के मंत्री थे, जिन्हें भीम ने वीरधवल के अनुरोध पर मैत्रीवश बाघेला राज्य की सेवार्थ भेज दिया था, अतः बाद में ये वीरधवल के मन्त्री रहे । सोमसिंह के शासनकाल में, वस्तुपाल के अनुज तेजपाल ने, १२३० ई० में अपने पुत्र लूणसिंह को स्मृति में, लूण वसहि नामक नेमिनाथ मन्दिर निर्मित करवाया। इस मन्दिर की पूजा के निमित समरसिंह ने सिरोही राज्य का दबाणी गाँव दान में दिया था। (४) परमार राजवंश के अन्तर्गत जैनधर्म : परमार शासकों ने भी जैन धर्म की उन्नति में अत्यधिक योगदान दिया था। “९५३ ई० में, ऋषभ जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा करवाने वाले सर्वदेव सूरि ने चन्द्रावती के कुंकण नाम के मंत्री को दीक्षा प्रदान की थी और इस कुंकण ने चन्द्रावती में एक जैन मन्दिर बनवाया था। सिरोही राज्य के दियाणा ग्राम के जैन मन्दिर में, विष्टित परिवार के वर्तमान द्वारा महावीर की मूर्ति प्रतिष्ठित करने का विवरण है। ऐतिहासिक दृष्टि से दियाणा का यह जैन शिलालेख, कृष्णराज परमार का समय निश्चित करने की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । कृष्णराज, आबु के परमार राजवंश में उत्पलराज का पौत्र एवं अरण्यराज का पुत्र था। आबू के परमार शासकों से सम्बन्धित यह प्राचीनतम अभिलेख है। झाड़ोली के महावीर जैन मन्दिर के ११९७ ई० के शिलालेख से ज्ञात होता है कि परमार राजा धारावर्ष की रानी शृङ्गार देवी ने मन्दिर निर्माण हेतु भूमि दान की १. राजपूताना का इतिहास, पृ० २०० । २. गुर्वावली, श्लोक सं० ५७-५८, पृ०६। ३. अप्रजैलेस, क्र० ४८६ । ४. वही, क्र० ३११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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