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________________ ४५४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म २९. ग्रन्थ भण्डार, टोक : यहाँ २ शास्त्र भण्डार हैं। चौधरियों के मन्दिर में स्थित शास्त्र भण्डार में २५३ प्रमथ और ८५ गुटके हैं। अधिकांश ग्रन्थ अपूर्ण है। उल्लेखनीय पांडुलिपि श्रुतसागर कृत 'तत्वार्थ सूत्र' पर कनक द्वारा रचित टीका है जो १७१५ ई० में लिखी गई थी। तेरापंथी मन्दिर के ग्रन्थ भण्डार में ३८२ ग्रन्थ और ५० गुटके है। (द) उदयपुर संभाग : १. उदयपुर के शास्त्र भण्डार : मेवाड़ के शासकों ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में अत्यधिक योगदान दिया। नगर में मन्दिरों के निर्माण के उपरान्त शास्त्र भण्डार स्थापित कर ग्रन्थों का संग्रह किया गया । उदयपुर नगर में ग्रन्थों के प्रतिलिपिकरण का काम विपुल मात्रा में हुआ। यहाँ के प्रतिलिपिकृत ग्रन्थ अन्यत्र भी उपलब्ध होते हैं । यहाँ ९ जैन मन्दिर हैं व सभी में छोटा-मोटा संग्रह है किन्तु ४ भण्डारों में महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ संग्रहीत हैं । (क) संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर का शास्त्र भण्डार : ___ इस भण्डार में ५२४ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं एवं अधिकांश पाण्डुलिपियाँ १५वीं से १८वीं शताब्दी के मध्य की है। प्राचीनतम पाण्डुलिपि १४०८ ई० में प्रतिलि पिकृत महोत्पल की 'लघुजातक टीका' है । यहाँ के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ-जयकीति रचित 'सीता शील पताका गुण वेलि', १५४७ ई०, सोमकवि कृत 'राजुल पत्रिका', ब्रह्म वास्तुपाल कृत 'रोहिणीवत प्रबंध', ब्रह्म ज्ञानसागर द्वारा १५३७ ई० में रचित 'हनुमान चरित रास', रत्नभूषण सूरि रचित 'अनुरुद्ध हरण' या 'उषा हरण', भानुकीति कृत 'भट्टारक सकल कीर्ति रास', पासचन्द्र कृत 'सनत कुमार रास', आशाधर कृत 'छंदरत्नाकर' एवं ज्योतिष ग्रन्थ, यशकीति द्वारा अपभ्रश में रचित 'हरिवंश पुराण' आदि उल्लेखनीय हैं। इसी शास्त्र भण्डार में एक ऐसा गुटका भी है, जिसमें ब्रह्मजिनदास की रचनाओं का प्रमुख संग्रह मिलता है। (ख) अग्रवाल दिगम्बर जैन मंदिर का शास्त्र भण्डार : ___ यहाँ गुटकों सहित ३८८ हस्तलिखित पाण्डुलिपियाँ हैं । प्राचीनतम पाण्डुलिपि १३१३ ई० की योगिनीपुर में प्रतिलिपिकृत पूज्यपाद की 'सर्वार्थ सिद्धि' है। दौलतराम कासलीवाल का साहित्यिक केन्द्र यही मन्दिर था। इनके 'जीवंधर चरित' की मूल पाण्डुलिपि यहीं संग्रहीत है। अन्य उल्लेखनीय ग्रथ-कल्याण कीति कृत 'चारुदत्त प्रबंध' (१६३५ ई०), गंगादास कृत 'महापुराण की चौपई', सुमति कीति रचित 'लोकमत निराकरण रास', जयकीति कृत 'अकलंक यति रास' (१६१० ई०), लालकवि रचित 'सुदर्शन सेठानी चौपाई' (१५७९ ई० ), रत्नभूषण कृत 'जिनदत्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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