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________________ ४४८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म (भट्टाकलंक ) की प्रतियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं । इस भण्डार में जयपुर के महाराजा सवाई प्रतापसिंह के संरक्षण में लिखी गई आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'अमृतसार' की एक उत्तम प्रति है जो १९७१ ई० में प्रतिलिपि की गई थी। ६. भरतपुर के शास्त्र भण्डार : ( क ) पंचायती मन्दिर का शास्त्र भण्डार : ग्रन्थों के संकलन की दृष्टि से यह भण्डार इस जिले का प्रमुख भण्डार है। इसमें हस्तलिखित ग्रन्थों की संख्या ८०१ हैं, जिनमें संस्कृत एवं हिन्दी के ग्रन्थ अधिक हैं। प्राचीनतम पांडुलिपि १४३३ ई० की प्रतिलिपिकृत 'तपागच्छ गुर्वावली' है। इसी भण्डार में 'भक्तामर स्तोत्र' की एक सचित्र पांडुलिपि है, जिसमें ५१ चित्र हैं, इस पांडुलिपि का रचनाकाल १७६९ ई० है । इसी तरह अपभ्रंश कृति 'सप्तव्यसन कथा' भी महत्त्वपूर्ण कृति है । अन्य महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ-गंगाराम कृत १७१७ ई० में रचित 'सभाभूषण', विश्वभूषणकृत 'जिनदत्त भाषा', हर्ष रचित ‘पद संग्रह', जोधराज कासलीवाल कृत 'सुखविलास' आदि हैं । यहाँ शतरंज के खेल से सम्बन्धित भी एक ग्रन्थ है । (ख ) फौजूराम दिगंबर जैन मंदिर का शास्त्र भण्डार, भरतपुर : ____ यहाँ का संग्रह केवल १०० वर्ष पुराना है । इसमें कुल ६५ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं। इसमें कुम्हेर के गिरिवर सिंह की तत्वार्थ सूत्र पर हिन्दी गद्य टीका एक उल्लेखनीय कृति है। ७. डीक शास्त्र भण्डार : ____डीक भरतपुर से २५ मील दूर है और पहले भरतपुर की राजधानी थी । यहाँ ३ मन्दिरों के शास्त्र भण्डार महत्त्वपूर्ण हैं । ( क ) पंचायती मंदिर का शास्त्र भण्डार : इस भण्डार में ८१ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं, जो मुख्यतः १८वीं एवं १९वीं शताब्दी के है। यहां पर सेवाराम पाटनी की १७९३ ई० में हिन्दी में रचित "मल्लिनाथ चरित्र" की मूल पाण्डुलिपि उपलब्ध है। यहाँ के ग्रन्थों में व्याकरण एवं आयुर्वेद ग्रन्थ भी हैं। ( ख ) बड़ा पंचायत दिगंबर जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार : __पहले यहाँ अच्छा ग्रन्थ संग्रह था जो अव्यवस्था के कारण नष्ट हो गया। वर्तमान में यहाँ ५६ पूर्ण ग्रन्थ एवं शेष अपूर्ण हैं । इस भण्डार की प्राचीनतम प्रति १४५४ ई० में मांडलगढ़ में लिखित 'भगवती आराधना' की प्रति है । इसके अलावा मुख्य ग्रन्थ राजहंस का संस्कृत में 'षट्दर्शन समुच्चय', श्रीधर का अपभ्रंश काव्य 'भविसयत्त चरिउ', गुणभद्रकृत 'आत्मानुशासन' और संस्कृत में सकल कीति कृत 'जंबू स्वामी चरित' आदि हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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