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________________ जैन शास्त्र भंडार : ४४७ पांडुलिपियाँ हैं जिसमें से एक में ३९ चित्र एवं दूसरी में ४२ चित्र हैं। ये प्रतियाँ १४७१ ई० एवं १४८२ ई० की हैं। यहाँ 'पद्मनन्दी महाकाव्य' की प्रह्लाद कृत एक सटीक प्रति भी है। अन्य उल्लेखनीय कृतियाँ-महाकवि श्रीधर की १४०५ ई० की अपभ्रश कृति 'भविष्यदत्त चरिउ' एवं 'समयसार' की तात्पर्य वृत्ति हैं। ३. शास्त्र भण्डार, भादवा : यह दिगम्बर जैन मंदिर में एक छोटा भण्डार है, जिसमें १३० ग्रन्थ और २० गुटके हैं। यहाँ दुर्लभ ग्रन्थ हैं। कुछ उल्लेखनीय ग्रंथ दयानतराय का 'धर्मविलास', भगवतीदास का 'ब्रह्मविलास', धर्मदास का 'धर्मोपदेश श्रावकाचार', लब्धि विजय गणी रचित 'ज्ञानार्णव भाषा' आदि हैं । ४. भट्टारक शास्त्र भण्डार, अजमेर : यहाँ का शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर बड़ा धड़ा में स्थित है । भट्टारकों की गादी अजमेर रहने से यह भण्डार साहित्यिक गतिविधियों का केन्द्र रहा । इसमें विभिन्न भाषाओं के हस्तलिखित ग्रन्थों की संख्या ३००० है। यहाँ पं० आशाधर (१३वीं शताब्दी ) के 'अध्यात्म रहस्य' की एकमात्र पांडुलिपि जुगल किशोर मुख्तार के द्वारा खोजी गई थी । प्राचीनतम पांडुलिपि 'समयसार प्राभृत' की है जो १४०६ ई० में प्रतिलिपि की गई। इसके अलावा-वृषभनंदि का 'जीवसार समुच्चय', तेजपाल का पारस चरिउ', प्रभाचंद्राचार्य की 'आत्मानुशासन टीका', ब्रह्मजिनदास कृत 'हरिवंश पुराण', आशाधर की 'सागर धर्मामृत', आदि कृतियाँ प्रथम बार यहीं उपलब्ध हुई। भगवती दास की 'शील बत्तीसी', 'राजमती गोत', 'अगलपुर जिन वंदना', 'राजावली', "बनजारा गोत', 'राजमती नेमिश्वर रास' आदि एक ही गुटके में प्राप्त हुई है। देल्ह कवि का 'बुद्धिप्रकाश', बूचराज का 'भुवनकीर्ति गीत' एवं 'धर्मकीर्ति गीत' इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। इसके अतिरिक्त भण्डार में 'सामुद्रिक पुरुष लक्षण' एवं “शांतिपुराण' की प्रतियाँ भी हैं । ५. ग्रंथ भण्डोर, अलवर : यहाँ ७ जैन मंदिर हैं व सभी में ग्रन्थ भण्डार हैं। खण्डेलवाल जैन पंचायती मंदिर में २११ हस्तलिखित ग्रन्थ, अग्रवाल पंचायतो मंदिर में १८६ ग्रन्थ, छाजूजी के मंदिर में ६० ग्रन्थ, नसिया के जैन मंदिर में ४२, बारा तल्ला जैन मंदिर में ४१ ग्रन्थ, साबजी साहिब के जैन मंदिर में ४० और नया बाजार जैन मंदिर में ३९ ग्रन्थ संग्रहीत हैं। इस प्रकार यहाँ कुल ६१९ ग्रन्थ हैं जो १८वीं एवं १९वीं शताब्दी के रचित हैं। खण्डेलवाल पंचायती मंदिर में "भक्तामर स्तोत्र' एवं 'तत्त्वार्थ सूत्र' की स्वर्णाक्षरी प्रतियां हैं जो कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं । यहाँ ४६ गुटके भी हैं, जिनमें 'अध्यात्म बारहखड़ी' ( दौलतराम कासलीवाल ), 'यशोधर चरित्र' ( परिहानंद ), 'राजवातिक' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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