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४४२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
पद्मनाभ की रचनाएँ विशेषतः उल्लेखनीय हैं। 'पूजा संग्रह' नामक चित्रित ग्रन्थ में पूजा के मंडपों के रंगीन चित्र दिये हुये हैं ।
(छ) पाटौदी जैन मन्दिर का शास्त्र भण्डार :
यह शास्त्र भण्डार जयपुर के चौकड़ी मोदीखाना में स्थित पाटोदी मन्दिर में अव-स्थित है । इस मन्दिर का प्रारम्भिक नाम आदिनाथ चैत्यालय भी था । जयपुर नगर के निर्माण के समय ही जोधराज पाटौदी ने इस मन्दिर का निर्माण करवाकर यहाँ शास्त्र भण्डार स्थापित किया । यहाँ शास्त्रों की कुल संख्या २२५७ तथा गुटकों की संख्या ३०८ है । एक-एक गुटके में कई कृतियों का संग्रह है । 'भक्तामर स्तोत्र' एवं 'तत्त्वार्थ-सूत्र' की एक-एक ताड़पत्रीय प्रति को छोड़कर शेष सब कागज ग्रन्थ हैं । यहाँ वस्त्रांकित जम्बू द्वीप, अढ़ाई द्वीप, यंत्र एवं मंत्र आदि का उल्लेखनीय संग्रह है । इस भण्डार में महाकवि पुष्पदन्त के 'जसहर चरिउ' की प्रति सबसे प्राचीन है जो १३५० ई० में चन्द्रपुर दुर्ग में प्रतिलिपि की गई थी । यहाँ १५वीं से १८वीं शताब्दी के मध्य रचित ग्रन्थों की संख्या सर्वाधिक है । इस भण्डार में लगभग ४५० ग्रन्थ वैदिक साहित्य से सम्बन्धित हैं ।
इस भण्डार के गुटके आयुर्वेद की जानकारी एवं जैन कवियों की नयी रचनाओं के बारे में अज्ञात जानकारी प्रदान करते हैं । कवि रल्ह की १२९७ ई० में रचित 'जिनदत्त चौपाई' गुटके में ही खोजी गई है । यहाँ के संस्कृत के अज्ञात ग्रन्थों में 'व्रतकथा कोष' ( सकलकीर्ति एवं देवेन्द्र कीर्ति ), आशाधर कृत 'भूपाल चतुविशति स्तोत्र'
टीका एवं 'रत्नत्रयविधि', भट्टारक सकल कीर्ति का 'परमात्मराज स्तोत्र', भट्टारक प्रभाचन्द्र का 'मुनिसुव्रत छन्द, विनयचन्द को 'भूपाल चतुर्विंशति' स्तोत्र की टीका उल्लेखनीय हैं । अपभ्रंश भाषा में लक्ष्मणदेव कृत 'णेमिणाह चरिउ', नरसेन की 'जिन -- रात्रि विधान कथा', मुनि गुणभद्र का 'रोहिणी विधान' एवं 'दशलक्षण कथा', विमलसेन की ' सुगन्ध दशमी कथा' आदि अज्ञात रचनाएँ हैं । राजस्थानी एवं हिन्दी भाषा की भी कई अज्ञात रचनाएं इस भण्डार में उपलब्ध हुई हैं ।
(ज) चन्द्रप्रभु सरस्वती भण्डार :
यह सरस्वती भवन छोटे दीवानजी के मन्दिर में स्थित है जो लालजी सांडा का रास्ता चौकड़ी मोदी खाना में स्थित है । यह अमरचन्द दीवान का मन्दिर भी कहलाता है जो १९वीं शताब्दी में जयपुर के ख्याति प्राप्त दीवान थे । इस भण्डार में संस्कृत ग्रन्थों की अपूर्व सम्पदा है | यहाँ कुल ८३० ग्रन्थ हैं जिनमें से ३६० अपूर्ण हैं । यहाँ पूजा एवं सिद्धान्त ग्रन्थों का भी अच्छा संग्रह है । १५६३ ई० में लिखित ' कार्तिकेयानुप्रेक्षा' इस भण्डार की प्राचीनतम प्रतिलिपि है । इस भण्डार के कतिपय दुर्लभ ग्रन्थ - - पूर्णचन्द्राचार्य कृत 'उपसर्ग हर स्तोत्र' ( १४९६ ई० ), आम्रदेव कृत 'लब्धि विधान कथा' ( १५५०.
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