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जैन शास्त्र भंडार : ४४१ दृष्टि से उचित समझ कर यहाँ भण्डार स्थापित किया गया। ये हिन्दी एवं संस्कृत के 'विद्वान् थे और स्वयं ने १५ से अधिक ग्रन्थों का हिन्दी अनुवाद किया था जो यहीं पर संग्रहीत भी हैं। इन्होंने अपनी यात्रा पर 'जैन यात्रा दर्पण' नामक वर्णनात्मक ग्रन्थ भी लिखा। इस भण्डार में लगभग ८५० ग्रन्थ हैं। अधिकांश हिन्दी ग्रन्थ हैं या संस्कृत टीकाएं हैं। सबसे प्राचीन प्रति १४७७ ई० को क्रियाकलापटीका' है, जो मांडवगढ़ में सुल्तान गयासुद्दीन के राज्य में लिखी गई थी। इस भण्डार में 'आप्तमीमांसा', 'तत्त्वार्थ सूत्र' की स्वर्णमयी प्रति, 'गोम्मटसार' एवं 'त्रिलोकसार' की सचित्र प्रति एवं पन्नालाल चौधरी द्वारा लिखित डालूराम कृत 'द्वादशांग पूजा' को प्रति भी दर्शनीय हैं । इस भण्डार जैसी सुन्दर हस्तलिखित प्रतियां अन्यत्र नहीं हैं।
(ङ) बधीचंद जैन मंदिर का शास्त्र भण्डार :
यह शास्त्र भण्डार' बधीचन्द के प्रसिद्ध मन्दिर में अवस्थित है जो जौहरी बाजार में घी वालों के रास्ते में स्थित है। इस भण्डार की स्थापना १७३८ ई० में जयपुर राज्य के दीवान बधीचन्द के द्वारा मन्दिर पूर्ण होने के उपरान्त की गई थी। इसमें गुटकों सहित १२७८ ग्रन्थ है। सभी कागज ग्रन्थ विभिन्न भाषाओं में रचित हैं। इस भण्डार का प्राचीनतम ग्रन्थ अपभ्रंश भाषा के वर्धमान काव्य पर संस्कृत की एक टीका है जो १४२४ ई० में रचित एक दुर्लभ कृति है। यहाँ अपभ्रश के कतिपय महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी हैं । महाकवि स्वयंभू का 'हरिवंश पुराण' यहाँ उपलब्ध है, जिसको सम्पूर्ण भारत में ३-४ प्रतियां ही प्राप्त हुई हैं। १३५४ ई० में सुधारू द्वारा राजस्थानी में रचित 'प्रद्युम्न चरित्र' भी यहाँ उपलब्ध है। गुटकों में विद्वानों के लघु कार्य एवं कवियों की कृतियाँ संकलित हैं, जैसे सकलकीति, छोहल, हंसराज, ठक्कुरसी, जिनदास, बनारसीदास आदि । १८वीं शताब्दी के विद्वान् अजयराज पाटनी की २० कृतियाँ यहाँ खोजी गई है। पं० टोडरमल एवं गुमानीराम ने इस भण्डार के संवर्धन में असीम योगदान दियो । टोडरमल की रचनाओं को मूल पांडुलिपियाँ भी यहाँ संग्रहीत हैं । (च) ठोलिया जैन मन्दिर का ग्रन्थ भण्डार :
ठोलिया परिवार द्वारा स्थापित यह शास्त्र भण्डार एवं मन्दिर घी वालों के रास्ते में है । इसमें ६५८ हस्तलिखित ग्रन्थ एवं १२५ गुटके हैं। अधिकांश पांडुलिपियाँ सांगानेर एवं आमेर से लाई हुई हैं। इस भण्डार में उपलब्ध प्राचीनतम ग्रन्थ ब्रह्मदेव लिखित 'द्रव्य संग्रह' पर एक टीका है, जो १३५९ ई० में फिरोजशाह के शासनकाल में योगिनीपुर में प्रतिलिपि की गई थी। इसमें १६वों, १७वीं एवं १८वीं शताब्दी के ग्रन्थों की संख्या अधिक है। यहाँ शुभचन्द्र, हेमराज, रघुनाथ, ब्रह्म जिनदास, ब्रह्मज्ञान सागर एवं
१. राजेशाप्रसू, भाग-३, भूमिका ।
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