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४४० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
लेकर अन्तिम मान्य लेखक मानिकराज रचित 'अमरसेन चरित' इस भण्डार में प्राप्य हैं । ११वीं शताब्दी में नयनंदि रचित 'सकल विधि निधान' और १०वीं शताब्दी में पद्मकीर्ति रचित 'पार्श्वपुराण' यहाँ के दुर्लभ ग्रन्थ हैं । इसी प्रकार संस्कृत में प्रकाश वर्ष द्वारा लिखित 'किरातार्जुनीय' की टीका भी यहाँ है जो अन्य भंडारों में नही है । सकलकीर्ति, ब्रह्मजिनदास, छोहल, बनारसीदास आदि की रचनाएँ भी इस भंडार में हैं । यहाँ जैनेतर लेखकों के ग्रन्थ भी संग्रहीत हैं । यहाँ की ग्रन्थ सूची प्रकाशित है ।" (ख) बड़ामन्दिर का शास्त्र भण्डार :
यह भंडार र घी वालों के रास्ते में दिगम्बर जैन तेरापंथी मन्दिर में है, जो जयपुर के सबसे बड़े शास्त्र भंडारों में से एक है । यहाँ २६३० कागज ग्रन्थ और ३२४ गुटके संग्रहीत हैं । टोडरमल, जयचंद छाबड़ा, सदासुख कासलीवाल आदि विद्वानों ने इस भंडार की संवृद्धि हेतु विशेष प्रयास किये थे । आचार्य कुंदकुन्द की प्राकृत कृति 'पंचास्तिकाय' यहाँ का प्राचीनतम ग्रन्थ है जो १२७२ ई० में योगिनिपुर ( दिल्ली) में प्रतिलिपि किया हुआ है । अन्य उल्लेखनीय ग्रन्थों में १५४० ई० की 'आदिपुराण' की ५५८ चित्रों सहित प्रति है । 'जम्बूस्वामी चरित्र' एवं 'पउम चरिय' पर संस्कृत की २ टीकाएँ भी उपलब्ध हैं । १०वीं शताब्दी की धवल रचित 'हरिवंश पुराण' भी यहाँ प्राप्य है । १३१४ ई० में देल्ह रचित 'चौबीसी' भी यहाँ खोजी गई है । गोरखनाथ, कबीर, बिहारी, केशव, वृंद जैसे जैनेतर कवियों की रचनाएँ, अपभ्रंश कवि अब्दुल रहमान का 'संदेश रासक' एवं महाकवि भारवि के 'किरातार्जुनीय' पर प्रकाश वर्ष की संस्कृत टीका की पांडुलिपियों का इस भण्डार में उल्लेखनीय संग्रह है ।
(ग) पांड्या लूणकरण का ग्रंथ भण्डार :
यह ग्रन्थ भंडार पंडित लूणकरण द्वारा १८वीं शताब्दी के अन्त में स्थापित किया गया था । ये ज्योतिष, आयुर्वेद, मंत्र शास्त्र के विद्वान्, स्वाध्याय प्रेमी एवं भट्टारक जगत्कीर्ति के प्रशिष्य थे। इनकी १७३१ ई० में रचित 'यशोधर चरित' की पांडुलिपि भी यहाँ उपलब्ध है । इस भंडार में ८०७ हस्तलिखित ग्रन्थ एवं २२५ गुटके हैं । यहाँ की प्राचीनतम पांडुलिपि १३५० ई० में लिपिबद्ध 'परमात्मप्रकाश' है । भट्टारक सकल कीर्ति के 'यशोधर चरित' की सचित्र प्रति भी यहाँ उपलब्ध है |
(घ) बाबा दुलीचन्द का शास्त्र भण्डार :
यह भण्डार भी दिगंबर तेरापंथी बड़ा मन्दिर में अवस्थित है । इसे १८५४ ई० में बाबा दुलीचन्द ने स्थापित किया था । ये पूना के निवासी थे । जयपुर को सुरक्षा को
१. राजेशाग्रसू, भाग - १ |
२. राजेशाग्रसू, २ भूमिका । ३. वही ।
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