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४३८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
१०. हनुमान गढ़ :
यहाँ ताराचन्द तातेड़ का संग्रह महत्त्वपूर्ण है। देवी जी के मन्दिर में बड़गच्छ के यति जी का भी संग्रह है ।
११. राजदेलसर :
यहाँ के उपकेशगच्छीय यति दौलत सुन्दर के संग्रह में कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त होते हैं ।
१२. रतनगढ़ :
यहाँ वैदों की लाइब्रेरी एवं सोहनलाल वैद के पास कुछ ग्रंथ हैं ।
१३. बीदासर :
यहाँ पर यति गणेशचन्द के पास हस्तलिखित ग्रंथों के १५-२० बंडल हैं ।
१४. छापर :
यहाँ मोहन लाल दुधेरिया के पास महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतियाँ व चित्रों का अच्छा संग्रह है ।
१५. सुजानगढ़ :
यहाँ लोंकाच्छ के अनुयायी वैद्य रामलाल यति, खरतरगच्छ के यति दुधेचन्द एवं दानचन्द चोपड़ा की लाइब्रेरी में हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । इसके अतिरिक्त पन्नाचन्द्र सिंधी जैन मन्दिर में भी कुछ हस्तलिखित प्रतियाँ हैं । १६. रिणी :
यहाँ पन्नालाल के व्यक्तिगत संग्रह में कुछ ग्रन्थ हैं ।
१७. अन्य संग्रह :
सरदार शहर में श्रीचंद गणेशदास गधेया की हवेली में भी अच्छा संग्रह है । उपकेश गच्छ ( कंवला गच्छ ) के श्रीपूज्य और यति प्रेमसुन्दर के संग्रह भी महत्त्वपूर्ण हैं । यहीं पर दुलीचंद सेठिया के पास कई सौ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । इसके अलावा आसपास गाँवों में श्रावकों के पास छोटे-छोटे व्यक्तिगत संग्रह भी हैं ।
उपरोक्त भण्डारों के दुर्लभ ग्रंथ :
बीकानेर क्षेत्र के उक्त भण्डारों में कई दुर्लभ ग्रन्थ प्राप्त हैं । पाशुपताचार्य की 'प्रबोध सिद्धि' और मूलक की 'वागेश्वर ध्वज प्रतिज्ञा गांगेय' ताड़पत्र पर अंकित हैं । इनमें सिद्धि चंद्र का 'भानुचरित्र', जिनपालोपाध्याय की 'खरतरगच्छ गुर्वावली', 'वादिदेव सूरि चरित्र' एवं विभिन्न लेखकों द्वारा रचित खरतरगच्छ, लोकागच्छ, बड़गच्छ आदि की पट्टावलियाँ उपलब्ध हैं । इन भण्डारों के कई ग्रन्थ ऐतिहासिक महत्त्व के हैं जैसे'जैतसीरासो', 'रसविलास', 'बच्छावत वंशावली', 'जिनभद्र सूरि रास', 'जिनपति सूरि रास', 'जिनकुशल सूरि रास', 'जिनपद्म सूरि रास', 'जिनराज सूरि रास', 'जिन रतन
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