SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : २३ भण्डारी यशोवीर ने, कुमारपाल द्वारा निर्मित पार्श्वनाथ मन्दिर का पुनरुद्धार १९८५ ई० में जालौर में करवाया था । " ओसिया से प्राप्त ११८८ ई० के लेख के अनुसार यशोधरा नामक महिला ने महावीर की रथशाला के निमित्त अपना घर भेंट में दिया । 1 इस प्रकार चौहानों के उदार राज्यकाल में पूर्व मध्यकालीन राजस्थान के मारवाड़, अजमेर, बिजौलिया एवं साँभर के क्षेत्रों में जैन धर्म का उत्कर्ष और प्रसार हुआ था। चौहान शासकों ने जैनेतर धर्म के अनुयायी होने पर भी वे सहिष्णुता वश जैन तीर्थंकरों की भी अर्चना करते रहे तथा जैन मतावलम्बियों के उत्सवों में भाग लेकर जैन प्रजा के प्रति सौहार्द्र का परिचय देते रहे । (३) चावड़ा तथा सोलंकी राजवंश के अन्तर्गत जैन धर्म : चावड़ा तथा सोलंकी शासकों ने भी जैन मत को संरक्षण प्रदान किया । इन राजवंशों के काल में जैन धर्म का अत्यधिक प्रचार हुआ । यद्यपि, ये शासक मूलतः शाक्त थे, किन्तु जैनाचार्यों के प्रति अत्यधिक आदर व सहिष्णुता का भाव रखते थे । कतिपय शासकों ने स्वयं जैन धर्म के प्रचार में सक्रिय सहयोग दिया। प्रसिद्ध जैनाचार्य हेमचन्द्र के चरित्र, पांडित्य एवं प्रभाव के कारण जैन मत का गुजरात व राजस्थान में अत्यधिक प्रसार हुआ था । विद्वत्ता एवं जीवन में शुचिता की दृष्टि से हेमचन्द्र को शंकराचार्य के तुल्य माना जा सकता है । अन्हिलवाड़ा के संस्थापक, वनराज ने चावड़ा वंश की स्थापना की थी । वनराज ने शीलगुण सूरि को अपनी राजधानी में आमंत्रित किया तथा अपना सम्पूर्ण राज्य वैभव सूरि जी के श्रीचरणों में अर्पित करने की तत्परता व्यक्त की । शीलगुण सूरि के प्रति अत्यधिक श्रद्धा का कारण यह भी बताया गया कि वनराज बाल्यावस्था में जंगल में पालने में सोया हुआ था, तब सूरि जी ने उसके शारीरिक लक्षणों को देखकर, उसके राजा होने की भविष्यवाणी की थी । निःस्वार्थ, त्यागी और तपस्वी सूरि जी ने दान के इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया, किन्तु सूरिजी के आदेशानुसार वनराज ने अहिलपुर पाटन में पंचासर नामक मन्दिर का निर्माण करवाकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित की थी । वनराज ने अपनी राजधानी में बसने के लिये श्रीमाल तथा मरुधर देश के अन्य स्थानों के जैन व्यापारियों को भी निमंत्रित किया था । अन्तिम वंशज से लगभग ९४२ ई० में मूलराज सोलंकी ने मूलराज शक्तिशाली शासक था, जिसके राज्य में सारस्वत, " वनराज चावड़ा के सत्ता हस्तगत कर ली । १. प्रोरिआसवेस, १९०८-०९, पृ० ५५ । २. नाजैलेस, १, क्र० ८०६, पृ० ९८ । ३. प्रबन्धचिन्तामणि, वनराज प्रबन्ध, पू० १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy