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________________ २२: मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म है कि कल्हणदेव की माता ने, महावीर मन्दिर के चैत्य में होने वाले कल्याणिक उत्सव के निमित्त, राजकीय भोज से एक हाएल ज्वार प्रदान की । इसके अतिरिक्त राष्ट्रकूट पान, कल्हण व उनके भतीजों-उत्तमसिंह, सद्रक, काल्हण आहड़, आसल, अणतिग आदि ने इसी निमित्त, तलारख की आय से एक द्रम दान दिया। इसी उत्सव के लिये रथकार धनपाल, सूरजपाल, जीपाल, सींगडा, अमियपाल, जिसहड़, दोल्हण आदि ने भी ज्वार का एक हाएल अर्पित किया।' कल्हण देव के शासनकाल के ११७६ ई० के लालराई के एक जैन मन्दिर के १८ पंक्तियों के लेख से ज्ञात होता है कि राजपुत्र लखनपाल व अभयपाल तथा रानी महादेवी ने, ग्राम पंचों के समक्ष, शान्तिनाथ की रथयात्रा के उत्सव के निमित्त, भादियात्र व ग्राम के पुरहारि रहट से गुजराती नाप के एक हारक यव प्रदान किये। लालराई के शान्तिनाथ के मन्दिर के ११७६ ई० के शिलालेख से विदित होता है कि नाणक ग्राम के स्वामी, राजपुत्र लखनपाल एवं अभयपाल के अधीनस्थ कृषक भींवड़ा, आशाधर व अन्यों ने, तीर्थंकर शान्तिनाथ से सम्बद्ध गुर्जरों के उत्सवों के लिये, ४ सेर जो अपने खेत खाडिसिरा से आत्म कल्याणार्थ भेंट किया था । ११७६ ई० के नाडौल के लेख के अनुसार, कल्हण के राज्य में, नाणक भौक्ता, राजपुत्र लखन आदि परिवार के द्वारा, प्रत्येक रहँट से पैदावार का कुछ भाग शान्तिनाथ की यात्रा के निमित्त, ग्राम के पंचकुल के सम्मुख अनुदान दिया गया।४ ११७९ ई० के, सांडेराव के पार्श्वनाथ मन्दिर के लेख में, कल्हणदेव की रानी जाल्हण देवी के द्वारा अपना घर पार्श्वनाथ को भेंट में देने का उल्लेख है।" ___कीर्तिपाल ने चौहानों की राजधानी नाडौल से जाबालिपुर (जालौर) स्थानान्तरित की, जहाँ से भी जैन धर्म के उत्थान के अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं । सत्ता में आने से पूर्व भी इसने जैन मन्दिरों को नियमित अनुदान दिये थे। महाराजा अल्हण के पौत्र एवं कीर्तिपाल के पुत्र, महाराजा समरसिंह के राज्यकाल के, ११८२ ई० के जालौर शिलालेख के अनुसार, श्रीमाल परिवार के सेठ यशोवीर ने, अपने भाई एवं गोष्ठी के समस्त सदस्यों के साथ एक मण्डप निर्मित करवाया था। यशोवीर समरसिंह के उत्तराधिकारी उदयसिंह का मन्त्री बना। चौहान महाराजा समरसिंह के आदेश से, १. एइ, ११, पृ० ४६-४७ । २. एइ, ११, पृ० ४९-५० । ३. वही, पृ० ५०-५१ । ४. नाजैलेस, १, क्र० ८९२, पृ० २३१ । ५. एइ, ११, पृ. ५१-५२ । ६. वही, पृ० ५२-५४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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