________________
४३६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
प्राचीन सिक्के, दवातें, स्वर्ण एवं रजत स्याही के द्वारा अंकित पांडुलिपियों का भी कलापूर्ण एवं भव्य संग्रह है। इस भण्डार को संवद्धित करने का श्रेय अगरचन्द नाहटा एवं भंवरलाल नाहटा को है। (ढ) अनूप संस्कृत लाइब्रेरी :
इसमें हजारों जैन हस्तलिखित प्रतियाँ हैं व एक स्वतंत्र जैन विभाग है जिसकी सूची प्रकाशित नहीं है । महाराजा अनूप सिंह के विद्या प्रेम से प्रभावित होकर बड़गच्छ, पायचन्द गच्छ, खरतरगच्छ आदि के आचार्यों एवं यतियों ने हजारों प्रतियाँ महाराजा को दी थीं। यहां कई दुर्लभ ग्रन्थ भी हैं। इसमें लगभग १५,००० पांडुलिपियाँ संग्रहीत हैं। (ण) यति लच्छीराम का संग्रह :
यति लच्छोराम के अधिकार में भी कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। (त) कोचरों के उपाश्रय में स्थित भण्डार :
यह कोचरों की गुवाड़ में स्थित है । इसमें ३० बंडलों में लगभग ८०० ग्रन्थ हैं। (थ) यति जयकरण का संग्रह :
इसमें लगभग २५० ग्रन्थ हैं ।
उपरोक्त सभी भण्डार उपासरों में स्थित है। इसके अतिरिक्त श्रावकों के व्यक्तिगत अधिकार में भी कुछ शास्त्र भण्डार हैं । (द) सेठिया लाइब्रेरी:
यह अगरचन्द भैरोदान सेठिया जैन पारमार्थिक संस्था के अन्तर्गत है । इसमें मुद्रित ग्रन्थों के अतिरिक्त लगभग १५०० हस्तलिखित पांडुलिपियाँ हैं । (ध) गोविन्द पुस्तकालय :
यह नाहटों को गुवाड़ में स्थित है। इसकी स्थापना गोविन्दराम भीखमचन्द भंसाली ने की थी। इसमें १७०० हस्तलिखित प्रतियाँ एवं १२०० मुद्रित ग्रन्थ है। (न) मोतीचन्द खजांची का संग्रह :
__इसमें कुल ६,००० हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जिनमें कुछ सचित्र भी हैं । (प) मनमल कोठारी का संग्रह :
यहाँ पर ३०० हस्तलिखित एवं २,००० मुद्रित ग्रन्थ संग्रहीत हैं। (फ) जेठीबाई का ज्ञान भण्डार :
यह बोधरों की गुवाड़ में स्थित है। इसमें लगभग ५०० हस्तलिखित प्रतियाँ हैं ।
उक्त भण्डारों के अतिरिक्त मंगल देव मालू के यहाँ भी शताधिक प्रतियाँ हैं । इसी तरह शिवचन्द्र भावक, रामपुरिया परिवार, कुछ यतियों आदि के पास भी हस्तलिखित ग्रन्थ हैं। पायचन्द गच्छ उसरे में भी अच्छा संग्रह है। मुनि जिन विजय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org