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४३४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
( उ ) जिनहर्षसूरि भण्डार :
इस भंडार में २९५ ग्रन्थ २७ बंडलों में सुरक्षित हैं । (ऊ) भुवन भक्ति भण्डार :
इस भंडार में ४७६ ग्रन्थ बंडलों में सुरक्षित हैं । साधारण संग्रह होने पर भी यहाँ कतिपय दुर्लभ ग्रन्थ हैं जैसे लक्ष्मीबल्लभगणी कृत 'कुमारसम्भव वृत्ति' एवं राजस्थानी भाषा की 'राजाभोज भानुमति कथा' आदि हैं ।
(ए) रामचन्द्र भण्डार :
इनमें ३०० ग्रन्थ ९ बंडलों में सुरक्षित हैं । अधिकांश ग्रन्थ प्रतिलिपिकृत हैं ।
(ऐ) मेहर चन्द भण्डार :
इसमें २९५ ग्रन्थ ९ बंडलों में सुरक्षित हैं ।
(ओ) अबीर जी भण्डार :
इसमें लगभग ५०० ग्रन्थ हैं ।
(ख) श्रीपूज्य भण्डार :
यह भंडार वृहद् खरतरगच्छ के बड़े उपासरे में स्थित है । इसमें २ संग्रह हैं । श्री पूज्य के संग्रह में लगभग २५०० ग्रन्थ हैं जो ८५ बंडलों में हैं । २००० मुद्रित पुस्तकें हैं । चतुर्भुज यति के संग्रह में ८०० ग्रन्थ १४ बंडलों में सुरक्षित हैं । इसके अतिरिक्त १०० गुटके भी हैं, जिनमें विभिन्न भाषाओं की रचनाओं का संकलन है ।
(ग) श्री जैन लक्ष्मी मोहन भंडार :
गड़ी के चौक में अवस्थित यह भंडार १८९४ ई० में उपाध्याय जयचंद के गुरु मोहनलाल के द्वारा स्थापित किया गया था । इसमें २५२९ ग्रन्थों का संग्रह १२१ बंडलों में सुरक्षित है । इसके अतिरिक्त २०० गुटके भी हैं । आगम साहित्य को दृष्टि से यह भंडार महत्वपूर्ण है ।
(घ) क्षमाकल्याण ज्ञान भण्डार :
यह भण्डार सुगनाजी के उपासरे में स्थित है । इसमें ७१५ ग्रन्थ हैं, जिसमें " खरतरगच्छीय गुर्वावली" सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं दुर्लभ ग्रन्थ है । हर्षसागरसूरि ने इस भण्डार की ग्रन्थ सूची तैयार की ।
(ङ) उपाश्रय भण्डार :
यह रांगड़ी के निकट बोहरों का सेरी में अवस्थित है । इसमें लगभग ८०५ ग्रन्थ २३ बंडलों में सुरक्षित हैं । यहाँ के प्राकृत एवं संस्कृत के हस्तलिखित ग्रन्थ महत्वपूर्ण हैं ।
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