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________________ जैन शास्त्र भंडार : ४३१ भट्टारकों को प्रशंसा में गोतात्मक कृतियाँ जैसे 'नेमिचन्द्र गोत', 'विशाल कीर्ति गीत', 'सहस्त्रकीर्ति गीत', 'श्रीभूषण गीत', 'धर्मकीर्ति गीत', 'गुणचन्द्र गीत' आदि भी यहाँ प्राप्त हैं। ४. जोधपुर के ग्रंथ भण्डार : यहाँ कई मन्दिर एवं उपासरों में ज्ञान भण्डार अवस्थित है, जिनमें सहस्त्रों की संख्या में हस्तलिखित पांडुलिपियाँ उपलब्ध है । राजस्थान राज्य सरकार द्वारा स्थापित 'राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान' का मुख्य कार्यालय यहीं पर है। इस प्रतिष्ठान का विशाल हस्तलिखित ग्रन्थागार है जिसमें लगभग ३०,००० जैन ग्रन्थ संग्रहीत हैं । इसी राजस्थानी शोध संस्थान, चौपासनी में भी १५,००० से अधिक हस्तलिखित ग्रन्थ हैं और जोधपुर महाराजा के 'पुस्तक प्रकाश संग्रह' में भी जैन ग्रन्थ विद्यमान हैं । __ स्वतंत्र जैन ज्ञान भण्डारों के रूप में भी जोधपुर में कई अच्छे संग्रह है, जिनमें केशरियानाथ मन्दिर में स्थित ज्ञान भण्डार महत्वपूर्ण है । इसमें लगभग २००० पांडु. लिपियाँ हैं। इसमें सूरचंद्र उपाध्याय रचित 'स्थूभिद्र गुणमाला काव्य' जैसी दुर्लभ पांडुलिपियाँ भी हैं। कोटड़ी के ज्ञान भण्डार में लगभग १,००० प्रतियाँ और जिनयश सूरि ज्ञान भण्डार में भी अच्छा साहित्य संग्रहीत है। जयमल ज्ञान भण्डार, जैनरत्न पुस्तकालय, मंगलचंद्र ज्ञान भण्डार, कानमल नाहटा का स्थानकवासी सम्प्रदाय का संग्रह आदि भी महत्वपूर्ण हैं । ५. फलौधी के ग्रन्थ भण्डार : इस स्थान पर ग्रन्थों के ३ संग्रहालय हैं। फूलचंद छाबक के संग्रह में लगभग ४०० ग्रन्थ हैं । साध्वी पुष्प श्री ज्ञान भंडार में ३७५ ग्रन्थ हैं तथा धर्मशाला के महावीर ज्ञान मन्दिर में १५० ग्रन्थ संग्रहीत हैं। ६. राजेन्द्र सूरि शास्त्र भण्डार, आहोर : इस भंडार की ग्रन्थ सूची अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में संरक्षित है । इस भंडार मैं हस्तलिखित ग्रन्थों का एक बड़ा संग्रह विद्यमान है । सभी कागज ग्रन्थ हैं एवं २२ बंडलों में बँधे हुए हैं । यहाँ प्राकृत, संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के ग्रन्थ हैं जिनमें से कुछ उल्लेखनीय हैं, जैसे, संस्कृत में मेघ विजयकृत 'जिनेन्द्र व्याकरण वृत्ति', १३९६ ई० में रचित 'नैषध काव्य वृत्ति', प्राकृत में सचित्र 'जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति' एवं रामचंद कृत “प्रद्युम्न चरित' । ७. जैन शास्त्र भण्डार, कुचामन सिटी : इस शहर के ३ जैन मन्दिरों में छोटे शास्त्र भण्डार हैं। इनमें अजमेरी मन्दिर के शास्त्र भंडार का संग्रह महत्वपूर्ण हैं, जिसमें प्राकृत एवं संस्कृत ग्रन्थों की अधिकता है। सभी कागज ग्रन्थ हैं, जो सिद्धांत, पुराण, चरित्र, पूजा एवं स्त्रोत आदि से संबंधित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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