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________________ ४३० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म दलाल एवं भण्डारकर, दोनों ने अपनी सूचियों में सम्मिलित किया है। इसमें १६१२ ई० से १८२७ ई० के मध्य की कई प्रतिलिपियां हैं । इस भण्डार में ४ ताडपत्रीय ग्रन्थ एवं लगभग १००० कागज ग्रन्थ हैं। इस प्रकार जैसलमेर के ग्रन्थ भण्डार, जिनमें ताड़पत्रीय ग्रन्थ प्रमुख हैं, एक अमूल्य धरोहर है । जैन मतावलंबियों के लिये इन ग्रन्थों का दर्शन ही तीर्थ यात्रा के समान पवित्र माना जाता है । २. हरिसागर ज्ञान भण्डार, लोहावत : इस भण्डार में ग्रन्थों की कुल संख्या २११० एवं ८७ गुटके हैं। इसमें संग्रहीत उल्लेखनीय ग्रन्थ इस प्रकार हैं-हिन्दी में 'राठौर वंशावली', जयनारायण कृत 'शृंगार शतक', जयशेखर कृत 'सम्यकत्व कौमुदी', लक्ष्मीचंद्र द्वारा संस्कृत में टीका संदेश रासक', हिन्दी में विजयदेव सूरि कृत 'नेमिनाथ रास', 'विवेकमंजरी'. रविधर्मकृत 'कवि रहस्य टीका', 'कान्य प्रकाश वृत्ति', 'नैषध काव्य वृत्ति' आदि । ३. भट्टारक ग्रंथ भण्डार, नागौर : प्राचीन लेखों में नागौर का नाम नागपुर एवं अहिछत्रपुर भी मिलता है । हस्तलिखित ग्रन्थों की दृष्टि से यह भण्डार अत्यधिक महत्वपूर्ण है।' यहाँ लगभग १४,००० पांडुलिपियों का संग्रह है जिसमें १००० से अधिक गुटके हैं। सभी कागज ग्रन्थ हैं। भण्डार में प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, राजस्थानी व हिन्दी, सभी भाषाओं में निबद्ध कृतियों का विविध विषयक संग्रह है । अधिकांश पांडुलिपियो १४वीं से १९वीं शताब्दी के मध्य की हैं। अजैन ग्रन्थ एवं भट्टारकों, आचार्यों के जीवन से सम्बन्धित ऐतिहासिक सामग्री भी यहाँ उपलन्ध है। प्राकृत भाषा के ग्रन्थों में आचार्य कुंदकुंद के 'समयसार' की १३०३ ई० की पांडुलिपि तथा 'मूलाचार' की १३८८ ई० की पांडुलिपि यहाँ प्राप्त है। अपभ्रंश के कई दुर्लभ ग्रन्थ भी यहां है, जैसे-वरांग चरिउ' ( तेजपाल ), 'वसुधीर चरिउ (श्रीभूषण), 'सम्यकत्व कौमुदी' ( हरिसिंह ), ‘णेमिणाह चरिउ' ( दामोदर ) आदि उल्लेखनीय है । संस्कृत एवं हिन्दी की भी दुर्लभ पांडुलिपियाँ यहाँ संग्रहीत हैं, यथा--भाउ कवि का 'नेमिनाथ रास' (१६वीं शताब्दी ), जगरूप कृत 'जगरूप विलास', कलह कृत 'कृपण पच्चीसी', मंडलाचार्य श्री भूषण कृत 'सरस्वती लक्ष्मी संवाद', सुखदेव कृत 'क्रियाकोष भाषा', मानसागर कृत 'विक्रमसेन चौपाई' आदि । अजैन कृतियों में हरिदास रचित "रघुवंश टीका', 'श्री निगम प्रवचन नाम सारोद्धार', 'विदग्ध मुख मंडन टीका', 'विदग्ध मुख मंडन वृत्ति', रूप सुन्दर कृत "पिंगल विवरण', 'वृत्त रत्नाकर टीका' आदि । १. अने०, ११, पृ० १२८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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