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जैन शास्त्र भंडार : ४२९.
(ग) पंचानौ शास्त्र भण्डार :
यह एक छोटा शास्त्र भण्डार है। दलाल ने अपनी ग्रन्थ सूची में इसका उल्लेख नहीं किया है। इसमें ४२ ताड़पत्रीय हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है। (घ) तपागच्छ ज्ञान भण्डार :
इसकी स्थापना का समय ज्ञात नहीं है। १५०२ ई० में इसे आनंदविजयगणी ने व्यवस्थित किया था। यह उपासरा तपागच्छ के साधुओं का केन्द्र था। यहां दोनों प्रकार के हस्तलिखित ग्रन्थ हैं किन्तु ताडपत्रीय ग्रन्थ केवल आठ हैं। इसमें संरक्षित महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ निम्न हैं-१. 'हरिविक्रम चरित'-जयतिलक रचित १३५८ ई० की प्रतिलिपि, २. 'मृगावती चरित'--मलधारी देवप्रभ रचित--कागज पर, ३. 'वासवदत्ता'--महाकवि सुबंधु रचित-१३५४ ई० में कागज पर तैयार प्रतिलिपि आदि हैं। (ङ) बड़ा उपासरा जैन ज्ञान भण्डार :
__ यह यति वृद्धिचंद की गुरु परंपरा का संग्रह है। इसमें कागज पर लिखित १०१९ ग्रन्थों का सुदर संग्रह है। यहाँ ताड़पत्रीय ग्रन्थ नहीं हैं। संभवतः इसीलिये इसका उल्लेख दलाल की सूची में उपलब्ध नहीं होता। यहाँ की कतिपय अमूल्य पांडुलिपियाँ निम्न है--१. 'नारदीय पुराण'---यह पांडुलिपि १४१९ ई० में प्रतिलिपिकृत है एवं संस्कृत में व्यास जनार्दन के द्वारा तैयार की गई थी।
२. 'वीसलरास'-राजस्थानी भाषा में है व अपूर्ण है।
३. 'उत्तराध्ययन सूत्र'-ज्ञान सागर सूरि की टीका सहित पांडुलिपि १४२९ ई०में प्रतिलिपिकृत । ( च ) लोंकागच्छीय ज्ञान भण्डार :
दलाल ने इसका नाम 'ड्रगर यति का ज्ञान भण्डार' दिया था परन्तु मुनि पुण्य विजय ने अपनी सूची में इसे उक्त नाम से अभिहित किया है । यति बेल जी को गुरू परंपरा के उपासरे के इस भण्डार में तांडपत्रीय ग्रन्थ केवल ११ ही हैं। इसमें पांडुलिपियों के सग्रह का श्रेय डूंगर यति को ही जाता है। जैसलमेर में १२२७ ई० में विवेक समुद्र द्वारा रचित 'पुण्याश्रव कथा' की पांडुलिपि इस ग्रन्थ भण्डार की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति है । इसमें ५०० कागज ग्रंथ भी संग्रहीत हैं जिनमें 'उदयविलास' एवं कतिपय रास महत्वपूर्ण हैं । (छ) थाहरूशाह ज्ञान भण्डार :
इसको स्थापना १७वीं शताब्दी में थाहरूशाह भंसाली द्वारा की गई थी । इसे १. जैसलमेर भण्डार की सूची, सेंट्रल लाईब्रेरी, बड़ौदा से १९२३ में प्रकाशित ।
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