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अध्याय सप्तम् जैन शास्त्र भंडार
राजस्थान के शास्त्र भण्डार ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में अत्यन्त गौरवपूर्ण हैं एवं हमारे पूर्वजों के साहित्यिक प्रेम व जैनाचार्यों को बुद्धिमत्ता के स्तुत्य प्रयासों के परि‘णाम हैं । प्रारम्भ में जैन श्रमण वर्ग श्रुतज्ञान को लिपिबद्ध करने के विपक्ष में था, 'किन्तु कालक्रम में यही परम उपादेय माना जाने लगा। गत १००० वर्ष के ग्रन्थ व ज्ञानभण्डार राजस्थान में विद्यमान हैं जिनसे हमें ज्ञात होता है कि श्रुत ज्ञान की अभिवृद्धि में जैनाचार्यों और श्रावक वर्ग ने विशेष योगदान दिया था। इन्होंने समय की गति को पहचान कर साहित्य सृजन के साथ-साथ उसके सुरक्षा पक्ष को भी अत्यधिक महत्व दिया और अपने अथक प्रयासों से घोरे-धीरे लाखों की संख्या में पांडुलिपियों का संग्रह कर लिया। मुस्लिम काल में इस साहित्यिक धरोहर को प्राणाधिक प्रिय समझकर सुरक्षित रखा गया, और यहाँ के शासकों व जनता, दोनों ने अपने अथक प्रयासों से इस निधि को नष्ट होने से बचाया । यहाँ के शासकों ने जहाँ राज्य स्तर पर ग्रन्थ संग्रहालयों एवं पोथीखानों की स्थापना की वहीं जैन समाज ने भी मन्दिरों, उपाश्रयों एवं अपने निवास पर भी पांडुलिपियों का अपूर्व संग्रह किया।
राजस्थान में हस्तलिखित ग्रन्थों के संग्रह रूप ज्ञान भण्डार हजारों की संख्या में थे, पर मुद्रण युग में छपी हुई पुस्तकें बिना परिश्रम व थोड़े मूल्य में ही सुलभ होने लगी, तब हस्तलिखित प्रतियों का पठन-पाठन क्रमशः कम होता चला गया। परिणामस्वरूप बहुत से लोगों ने कौड़ियों के मोल अपने संग्रह बेच डाले । हजारों प्रतियाँ राजस्थान से अंग्रेजों के शासनकाल में अन्यत्र या विदेशों में चली गईं। धर्माध मुस्लिमों के शिकार अनेक ग्रन्थ भण्डार भी हुए। उचित देखभाल के अभाव में हजारों प्रतियां चूहों और दीमकों की भक्ष्य बन गई । वर्षा और सर्दी के प्रभाव से हजारों प्रतियों के पृष्ठ चिपक कर थेपड़े बन गये। उन्हें जलाने के काम में लिया गया। हजारों प्रतियां पानी में भिगोकर कूटे के काम में ली गई। इतना भयंकर विनाश होने के बावजूद राजस्थान में अभी लाखों हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रतियाँ अवशिष्ट हैं।'
राजस्थान में जैन शास्त्र भण्डारों को सर्वाधिक संख्या है। ये राजस्थान के सभी प्रमुख नगरों एवं कस्बों में मिलते हैं । यद्यपि अभी तक सारे शास्त्र भण्डारों की पूरी
१. नाहटा, राजैसा, पृ० २७६ ।
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