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________________ जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ४१३ ३८. ज्ञानसार--ये खरतरगच्छीय रत्नराज गणी के शिष्य एवं राज्यमान्य विद्वान् थे। इन्होंने १७९९ ई० में जयपुर में 'कामोद्दीपन' की रचना की। ३९. पं० टोडरमल :-ये जयपुर के निवासी, अप्रतिम विद्वान् व ख्याति प्राप्त लेखक थे । २८ वर्ष की अल्पायु में ही इनका निधन हो गया। १५ वर्ष की आयु में ही इन्होंने मुल्तान के श्रावकों को कुछ जटिल प्रश्नों का उत्तर देते हुए, आध्यात्मिक विचारों से पूर्ण एक पत्र लिखा था । 'अर्थ संदृष्टि अधिकार' इनके द्वारा रचित गणित की उच्चकोटि की कृति है। इन्होंने 'आत्मानुशासन', 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' एवं 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' नामक महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना प्रारम्भ की, किन्तु अन्तिम दो रचनाओं को वे पूर्ण नहीं कर पाये। रचनाओं की भाषा में ब्रज, राजस्थानी व हिन्दी का मिश्रित रूप देखने को मिलता है। 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' पर व्याख्या दौलतराम ने पूर्ण कर दी थी, किन्तु 'आत्मानुशासन' पर कार्य अपूर्ण ही रहा । ४०. विजयकीति :-इनका सम्बन्ध स्वर्णगिरी की भट्टारक परम्परा से रहा है। कवि ने अपनी रचनाओं में स्वपरिचय के प्रति उपेक्षा भाव रखा है। ये अजमेर और नागौर से सम्बन्धित रहे। अद्यावधि, विजयकीति प्रणीत निम्न कृतियों का पता लगा है-'श्रेणिक चरित्र' १७७० ई०, 'विजय दण्डक' .१७७२ ई०, 'करणामृत पुराण' १७६९ ई०. 'चंपक श्रेष्ठि व्रतोद्यापन सरस्वती कल्प', 'निमिचंद्र जीवन', 'गजसुकुमाल चरित्र' एवं स्फुट पद । ४१. पदमनाभ कायस्थ :-ये बून्दी निवासी थे। इन्होंने १६६४ ई० में 'यशोधर' चौपई बंध कथा' की रचना की। ४२. बख्ताराम :-१७४३ ई० में इनके द्वारा 'धर्मबुद्धि कथा' नामक कहानी लिखी गई। ४३. लखण :-१७१८ ई० में इन्होंने कोटा के निकट बिलासपुर में 'जिनदत्त चरित्र' की रचना की। ४४. विजयनाथ :-टोडानगर निवासी इन कवि ने 'वर्द्धमान पुराण' का हिन्दी में: अनुवाद किया। १. राजैसा, पृ० २८१ । २. कासलीवाल, राजैसा, पृ० २८५-३०५ । ३. वहो । ४. वही। ५. वही। ६. वही। ७. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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