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४१२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
३१. दीपचंद-ये खरतरगच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने हिन्दी में 'बालतंत्र की भाषा वचनिका' लिखी।'
३२. अमरविजय-ये खरतरगच्छीय उदयतिलक के शिष्य थे। इनकी हिन्दी रचना “अक्षर बत्तीसी' है।
३३. रघुपति-ये खरतरगच्छीय विद्यानिधान के शिष्य थे। इनका रचनाकाल १७३० ई० से १७८२ ई० तक था । हिन्दी में इन्होंने 'जैनसार बावनी' तथा 'भोजन'विधि' नामक रचनाएँ रचों । 'जैनसार बावनी' की रचना १७४५ ई० में नापासर में
३४. विनयभक्ति-ये खरतरगच्छीय वाचक भक्तिभद्र के शिष्य थे। इनकी पहली हिन्दी रचना 'जिनलाभ सूरि दवावत' है । सम्भवतः इस कृति का रचनाकाल १७४७ ई० से १७७७ ई० के मध्य था । इनकी दूसरी रचना १७६५ ई० जैसलमेर में 'अन्योक्ति बावनी' लिखी गई।
३५. क्षमाकल्याण-ये खरतरगच्छोय वाचक अमृतधर्म के शिष्य थे । इनका रचनाकाल १७६९ ई० से १८१६ ई० रहा । बंगाल, बिहार आदि में भी विहार करने के कारण इनकी रचनाओं पर हिन्दी का अच्छा प्रभाव है । इन्होंने अपभ्रश के 'जयतिहुण स्तोत्र' का हिन्दी पद्यानुवाद किया । इसके अतिरिक्त इन्होंने 'चतुर्मालिका होलि पर्व कथा', 'अक्षयतृतीया कथा', 'हितशिक्षा द्वित्रिशिका', 'अंबद्र चरित्र' आदि की भी रचना की।
३६. शिवचंद्र-ये खरतरगच्छीय पुण्यशील के प्रशिष्य और समयसुन्दर के शिष्य थे। इन्होंने १७९४ ई० में जैसलमेर में वहां के रावल मूलराज की प्रशंसा में 'समुद्रबद्ध काव्य वचनिका' की रचना की । इसके अतिरिक्त इन्होंने २ पूजायें भी रची।
३७. कल्याण कवि-ये खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १७६५ में 'जैसलमेर गजल', १७८१ ई० में 'गिरनार गजल' और १८०७ ई० में 'सिद्धाचल गजल'-ये तीन नगर वर्णनात्मक गजलें बनाई।
१. राजैसा, पृ० २७९ । २, वही, पृ० २८०। ३. वही। ४. वही । ५. वही। ६. वही। ७. वही, पृ० २८१ ।
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