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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ४११ २४. मानकवि द्वितीय-ये खरतरगच्छीय वाचक सुमति मेरु के शिष्य थे । इन्होंने १७१६ ई० में 'संयोग द्वात्रिंशिका' नामक ७३ पद्यों की शृंगारिक रचना लिखी । अन्य दो रचनाएँ वैद्यक सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं। पहली १६८८ ई० में लाहौर में 'कवि विनोद' ७ खण्ड में रची गई और दूसरी १६८९ ई० में 'कवि प्रमोद' रची गई । दोनों ही रचनाओं में इन्होंने स्वयं को बीकानेर निवासी बताया है ।
२५. कवि लालचंद-ये शांतिहर्ष के शिष्य और जिनहर्ष कवि के गुरुभ्राता थे। इनका दीक्षा नाम लाभवर्धन था। इनकी हिन्दी रचनाओं में १६७९ ई० में बीकानेर में रचित 'लीलावती गणित', १७०४ ई० में रचित "अंक प्रस्तार' आदि गणित विषयक रचनाएँ हैं। इनकी ही 'स्वरोदय भाषा' और 'शकुनदीपिका चौपई' भी अच्छी कृतियाँ हैं।
२६. जोशीराय मथेण-ये बीकानेर के महाराजा अनुपसिंह द्वारा सम्मानित थे । इन्होंने हिन्दी में १७१० ई० से १७१२ ई० के मध्य में महाराजा सुजानसिंह सम्बन्धी 'बरसलपुर गढ़ विजय' की रचना की थी।
जोगीवास मथेण-ये जोशीराय मथेण के पुत्र थे । इन्होंने १७३५ ई० में 'वैद्यक सार' नामक हिन्दी पद्य ग्रन्थ रचा ।
२८. नयन सिंह-ये खरतरगच्छ के पाठक जसशील के शिष्य थे। इन्होंने १७२९, ई० में बीकानेर राजवंश के राजा आनन्द सिंह के लिये 'भर्तृहरि शतक त्रय भाषा' की रचना की थी । इसलिये इस रचना का 'आनन्दभूषण' या 'आनंद प्रमोद' नाम रखा गया है।
२९. देवचंद्र-ये खरतरगच्छीय दीपचन्द्र के शिष्य थे। इनका दीक्षा नाम राजविमल था। इन्होंने बीकानेर में १७०६ ई० में 'द्रव्यप्रकाश' नामक ग्रन्थ की रचना की।
३०. रूपचंद्र ( रामविजय )-ये खरतरगच्छीय उपाध्याय दयासिंह के शिष्य थे। इन्होंने १७१५ ई० में 'जिनसुख सूरि मजलस' की रचना की। १७४१ ई० में दूसरी रचना 'लघुस्तव टब्बा' रचा।'
१. राजैसा, पृ. २७८। २. वही, पृ० २७९ । ३. वही । ४. वही। ५. वही। ६. वही। ७. वही।
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