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४१४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
४५. लालचंद सांगानेरिया :-इन्होंने 'वारांग चरित', 'विमल पुराण' आदि की रचना की।
४६. पंडित शिवजी लाल :-ये जयपुर के प्रसिद्ध विद्वान् थे। इन्होंने १७६१ ई० में 'भगवती आराधना टीका' की रचना की। इनके द्वारा रचित भाषा वचनिकाएँ, जैसे .. 'रत्नाकरानंद', 'चर्चा संग्रह', बोधसार', 'दर्शनसार', 'आध्यात्म तरंगिणी' आदि भी उपलब्ध हैं। इनकी कृति 'तेरापंथ खण्डन' से जैनमत में तेरापंथ की उत्पत्ति विषयक जानकारी मिलती है !२
४७. जयचंद छाबड़ा:-इन्होंने संस्कृत कृतियों का हिन्दी में अनुवाद किया। ये "देवागमस्तोत्र भाषा', 'भक्तामर स्तोत्र भाषा' आदि पदों के भी लेखक थे ।
४८. पं० दीपचंद साह :-ये सांगानेर निवासी थे, किन्तु बाद में आमेर चले गये । इनकी रचनाएँ 'अनुभव प्रकाश', 'चिद्विलास', 'आत्मावलोकन', 'परमात्मपुराण', "उपदेश रत्नमाला', 'ज्ञानदर्पण', 'स्वरूपानंद' और 'भाव दीपिका' आदि हैं । अधिकांश रचनाएँ हिन्दी गद्य में हैं।
४९. कुशलचंद्र काला :-इन्होंने कई पुराणों व चरित्रों पर वचनिकाएँ लिखीं। १७३९ ई० में इन्होंने सकलकीर्ति की रचना पर हिन्दी में 'सुभाषित' नामक काव्य लिखा ।"
५०.५० दौलतराम :–इन्होंने १७२० ई० में पांडे जिनदास को कृति 'पुण्यासव' पर हिन्दी में एक वचनिका लिखी। १७३८ ई० में उदयपुर में "क्रिया कोषभाषा' की - रचना की तथा 'चतुर चितारणी' की रचना भी उदपुर में ही को।
५१. पं० देवीदास गोषा :-ये जयपुर के निकट बसवा के निवासी थे। इन्होंने .१७८७ ई० में भिलसा में नरेन्द्र सेन की संस्कृत कृति 'सिद्धांतसार संग्रह' पर हिन्दी में एक वनिका लिखी। ये 'चर्चाग्रन्थ', 'चिद्विलास' और 'प्रवचनसार' के भी लेखक हैं।"
१. वीरवाणी, १, पृ० १५५ । २. जैसाऔइ, पृ० ३४-३५ । ३. राजेशाग्रसू, पृ० ४०७-८ । ४. अने०, १३, अं० ४,५,७ । ५. वीरवाणी, १, पृ० ४८ । ६. वही, २, पृ० ३० । ०७. वही, ६, पृ०८६ ।
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