________________
जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ४०७ 'अमरसेन वयरसेन चौपई', 'कीर्तिधर सुकौशल मुनि सम्बन्ध', 'स्थूलभद्र धमाल', 'राजुलनेमि धमाल', 'नेमिनाथ नवभव रास', 'देवदत्त चौपई', 'धनदेव पद्मरथ चौपई', 'अंजना सुन्दरी चौपई', 'नर्मदा सुन्दरी चौपई', 'पुरन्दर चौपई', 'पद्मावती पद्मश्री - रास', 'मृगांक पद्मावती रास' 'माल शिक्षा चौपई', 'शीलबावनी', 'सत्य की चौपई', 'सुरसुन्दर राजर्षि चोपई' 'महावीर पारणा' और कई स्तवन सज्झाय, पद आदि इनके द्वारा विरचित हैं । "
२. महोपाध्याय समयसुन्दर — ये राजस्थान के बहुत विद्वान् जैनाचार्य व साहित्यकार हुये हैं । इन्होंने विविध भाषाओं में असंख्य गद्य-पद्य रचनाएँ रचीं। इनकी कई रचनाएँ हिन्दी में भी हैं, जिन पर स्पष्ट रूप से राजस्थानी भाषा का प्रभाव है । १६०१ ई० में इन्होंने 'चौबीसी' की रचना की । 'ध्रुपद बत्तीसी' और कई हिन्दी पद भी इन्होंने सृजित किये ॥२
३. जिनराजसूरि - ये अकबर प्रतिबोधक युगप्रधान जिनचन्द्रसूरि के प्रशिष्य थे । ये अपने समय के उद्भट विद्वान् एवं कवि थे । इन्होंने 'नैषधकाव्य' पर ३६००० श्लोक प्रमाण टीका बनाई । १६२९ ई० में ये शाहजहाँ से मिले थे । 'शालिभद्र चौपई' इनकी . सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है । अन्य रचनाओं का संग्रह भी 'जिनराजसूरि कृति संग्रह'. में प्रकाशित है । इन्होंने हिन्दी में बहुत से सुन्दर पदों की भी रचना की । *
४. कवि वामौ —ये अंचलगच्छीय वाचक उदयसागर के शिष्य थे । १६१२ ई० में इनके पूर्व रचित ग्रन्थ '
इन्होंने जालौर में 'मदननरिद चौपई' की रचना की, जिसमें 'मदनशतक' का भी उल्लेख है । 'मदनशतक' हिन्दी भाषा का इनकी इस प्रति में आठ चित्र भी हैं ।
सुन्दर प्रेमकाव्य है ।४
५. कवि कुशललाभ - ये खरतरगच्छीय वाचक अभयधर्म के शिष्य थे । 'ढोलाare sोप' इनकी बहुत ही प्रसिद्ध रचना है । 'स्थूलिभद्र छत्तीसी' इनकी प्रमुख हिन्दी रचना है ।
६. भद्रसेन — खरतरगच्छ के इस कवि का नामोल्लेख १६१८ ई० के शत्रुंजय. शिलालेख में पाया जाता है । इनकी प्रसिद्ध रचना 'चंदन मलयागिरि चौपई' विक्रमपुर,
१. राजैसा, पृ० २६९ ।
२. वही, पृ० २७० ।
३. वही, पृ० २७१ ।
४. भारतीय साहित्य, जुलाई - अक्टूबर, १९६२ ।
५. राजैसा, पृ० २७२ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org