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________________ ४०६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म 'खुली चरचा', 'आसव संवर री चरचा', 'कालवादी री चरचा', 'इन्द्रियवादी की चरचा', 'द्रव्य जीव भाव री चरचा', 'निक्षेपां री चरचा', 'टीकम डोसी री चरचा', 'पाँचभाव री चरचा', 'पाँच भाव रो थोकड़ो' ( २ भाग ), 'आठ आत्मा रो थोकड़ो', 'भिक्खु पिरिच्छा', 'तेरह द्वार', 'लिखत ' आदि । दौलतराम कासलीवाल ने " पुण्यास्रव कथा कोष' १७२० ई०, 'आदि पुराण' १७६६ ई०, 'पद्मपुराण' १७६६ ई०, 'पुरुषार्थ सिद्धयुपाय' १७७० ई०, 'हरिवंश पुराण' १७७२ ई०, 'परमात्म प्रकाश' व " सारसमुच्चय' राजस्थानी गद्य में रचे । २ दीपचन्द कासलीवाल ने 'अनुभव प्रकाश ' १७२४ ई०, 'चिद्विलास' १७२२ ई०, 'आत्मावलोकन' १७१७ ई०, 'परमात्म प्रकाश', 'ज्ञानदर्पण', 'उपदेश रत्नमाला' और 'स्वरूपानन्द' गद्य में निबद्ध किये । महापण्डित टोडरमल १७५० ई० के आसपास जयपुर में हुए । इन्होंने राजस्थानी भाषा में कई. टीका ग्रन्थ रचे । जिनमें मुख्य 'गोम्मटसार जीवकांड', 'गोम्मटसार कर्मकांड', 'लब्धिसार', 'क्षपणासार', 'त्रिलोकसार', 'मोक्षमार्ग प्रकाशक', 'आत्मानुशासन', 'पुरुषार्थ - सिद्धयुपाय' एवं 'रहस्य चिट्ठी' आदि हैं । * (५) हिन्दी गद्य-पद्य साहित्य एवं साहित्यकार: प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश और राजस्थानी के समान हिन्दी भाषा में भी राजस्थान के जैन साहित्यकार अविच्छिन्न रूप से साहित्य सर्जन करते रहे । इस सन्दर्भ में साधुसाध्वियों और श्रावकों, सभी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। मुगल साम्राज्य के समय से राजस्थान में हिन्दी का प्रचार बढ़ा। हिन्दी जैन कवि १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही अधिक मिलते हैं । अभिव्यक्ति के माध्यम की दृष्टि से गद्य व पद्य की विभिन्न विधाओं में विपुल साहित्य सृजन हुआ । इससे पूर्व की सारी रचनाएँ राजस्थानी भाषा की ही मानी जा सकती हैं । १८वीं शताब्दी तक के कतिपय प्रमुख हिन्दी साहित्यकारों का वर्णन इस प्रकार है १. कवि मालदेव - ये बड़गच्छ की भटनेर शाखा के आचार्य भावदेवसूरि के शिष्य थे | भटनेर व बीकानेर क्षेत्र इनका कार्यस्थल रहा । इनका रचनाकाल १५५५ ई० से १६११ ई० रहा । इनकी अब तक ३०-४० रचनाएँ ही उपलब्ध हैं । इनकी भाषा हिन्दी, राजस्थानी मिश्रित थी । मुख्य रचनाएँ इस प्रकार हैं- 'वीरांगद चौपई' १५५५ ई०, 'भविष्य भविष्या चौपई' १६११ ई०, 'विक्रम चौपई', पंचपुर में रचित 'भोज चौपई', १. देवकोठारी, राजेसा, पू० २३४-२३९ । २. राजैसा, पु० २२२ । ३. वही । ४. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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