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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ४०५ श्रीदेव ने जैन भूगोल संबंधी प्राकृत ग्रन्थ 'क्षेत्र समास बालावबोध' की रचना की । राजसोम को 'मिथ्या दुष्कृत बालावबोध' की १६५२ ई० की प्रति भी प्राप्त है । १६६२ ई० में ज्ञान निधान ने 'विचार छत्तीसो' गद्य ग्रन्थ लिखा ।' ___ अखयराज श्रीमाल ने इसी शताब्दी में 'चतुर्दशगुण स्थान चर्चा', विषापहार, स्तोत्र वचनिका, 'कल्याण मंदिर स्तोत्र भाषा वचनिका', 'भक्तामर स्तोत्र भाषा वचनिका' व 'भूपाल चौबीसी भाषा वचनिका' को रचना की । पांडे हेमराज ने 'प्रवचनसार भाषा' १६४२ ई० 'पंचास्तिकाय', 'नयचक्र', 'गोम्मटसार कर्मकांड' आदि पर बालाववोध व टीकाएँ रची।।
१८वीं शताब्दी-लक्ष्मीविनय ने संस्कृत के ज्योतिष ग्रन्थ 'भुवनदीपक' पर १७१० ई० में बालावबोध भाषा टीका लिखी। उपाध्याय देवचन्द्र ने मारोठ की श्राविका के लिये १७१९ ई० में 'आगम सार' ग्रन्थ लिखा। इन्होंने 'नयचक्रसार बालावबोध', 'गुणस्थान शतक', 'कर्मग्रन्थ बालावबोध', 'विचार सार टब्बा', 'गुरु गुण षट्त्रिंशिका टब्बा' और 'विचार रत्नसार' प्रश्नोत्तर ग्रन्थ गद्य में विवेचित किये । इन्होंने अन्य कई और गद्य रचनाएँ भी की । रामविजय ने कई प्राकृत, संस्कृत ग्रन्थों को गद्य रचनाएँ लिखकर सर्वसाधारण के लिये सुगम बनाया। १७३१ ई० में इन्होंने “भर्तृहरि शतक त्रय बालावबोध' व १७३४ ई० में 'अमरू शतक बालावबोध' की रचना की। १७३५ ई० में इन्होंने 'लघुस्तव' नामक दैवीय स्तुति की भाषा टीका बनाई। इसके अतिरिक्त कई स्तोत्रों पर टब्बे व भाषा टीका लिखीं। ये बहुत बड़े गद्य लेखक थे। जयचन्द ने १७१९ ई० में कुचेरा में 'माताजी की वचनिका' की रचना की। पाश्र्चचन्द्र गच्छीय रामचंद्र ने 'द्रव्यसंग्रह बालावबोध' की रचना की। खरतरगच्छीय 'पद्मचन्द्र के 'नवतत्व का बालावबोध' १७०९ ई० में बनाया । सभाचन्द्र ने १७१० ई० में 'ज्ञानसुखड़ी' की रचना की। रत्नधीर ने 'भुवनदीपक' नामक ज्योतिष ग्रंथ का १७४९ ई० में वालावबोध रचा । चैनसुख ने १७६३ ई० में वैद्यक ग्रन्थ 'शत श्लोकी वैद्य जीवन' और पथ्यापथ्य' पर टब्बा लिखा । कवि रूघपति ने १७५६ ई० मे 'छुरियर बालावबोध' रचा। उपाध्याय क्षमा कल्याण ने 'प्रश्नोत्तर साहित्यिक शतक भाषा' १७९६ ई० में बीकानेर में और 'अंबड चरित्र' १७९७ ई० में रचा।
आचार्य भिक्षु ( भोखण ) ने कई गद्य रचनाएँ निबद्ध की, जिनमें से प्रमुख '३०६ बोला रो हुंडो', '१८१ बोलां री हुंडी', 'जोगा री चरचा', 'जिनाज्ञा रो चरचा', १. राजैसा, पृ० २२६-२३२ । २. वही। ३. वही। ४. वही।
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