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४०० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
४५. हरकूबाई-इन्होंने १७६३ ई० में "महासती श्री अमरू जी का चरित्र" की रचना की। इन्हीं की एक अन्य रचना “महासती चतरू जी सज्झाय" भी मिलती है।
४६. आचार्य श्री भिक्षु-(१७२६ ई०-१८०३ ई.)-इन्होंने श्वेताम्बर मत में तेरापंथ की स्थापना की । इन्होंने पद्य व गद्य दोनों में साहित्य सृजन किया। इनकी पद्य कृतियां "भिक्ष ग्रंथ रत्नाकर" में संकलित हैं, इनका गद्य व पद्य साहित्य सृजन ३८००० श्लोक परिमाण है। समस्त साहित्य तत्त्व विश्लेषणात्मक, शिक्षात्मक, आचार शोधक, आख्यानात्मक, स्तवनप्रधान एवं अन्य विषयों से सम्बन्धित है।
४७. हर्षकोति-इन्होंने १६२५ ई० में "चतुर्गति वेलि" रचना समाप्त की। १६२७ ई० में 'श्रेपनक्रियारास" की रचना की। अन्य कृतियाँ "नेमिराजुल गीत", "नेमीश्वर गीत", "मोरडा", "कर्म हिण्डोलना", "पंचगति वेलि" आदि हैं। व्याकरण ग्रंथों में इन्होंने 'सारस्वत दीपिका", "धातुपात तरंगिणी", "शारदीय नाममाला", व "श्रुतबोध वृद्धि" रची।
४८. दिलाराम-इनका कार्यक्षेत्र बून्दी रहा। इन्होंने १७११ ई० में “दिलाराम विलास", १७०१ ई० में "व्रतविधान रासौ" तथा १७११ ई० में "आत्मद्वादशी" की रचना की।
४९. नथमल बिलाला-इन्होंने "सिद्धान्तसार दीपक" की रचना भरतपुर में व "भक्तामर स्तोत्र की भाषा" हिण्डोन में १७७२ ई० में लिखी। इनकी अन्य रचनाएं"जिनगुण विलास" १७६५ ई०, “नागकुमार चरित्र" १७७७ ई०, "जीवंधर चरित्र" १७७८ ई०, “जम्बू स्वामी चरित" तथा "अष्टाह्निका कथा" हैं । “गुणविलास" इनकी लघु रचनाओं का संग्रह है । यह संकलन १७६५ ई० में समाप्त हुआ।
५०. अचल कोति-इन्होंने १७२० ई० में “कर्मबत्तीसी" रची। अन्य रचनाएँ "विषापहार स्तोत्र भाषा" एवं “रविव्रत कथा" हैं।
१. वही राजैसा, पृ० १८५ । २. नाहटा, ऐतिहासिक काव्य संग्रह, पृ० २१४-१५ । ३. राजैसा, पृ० २३४-२३९ । ४. वही, पृ० २०९। ५. वही, पृ० २११ । ६. वही, पृ० २१२ । ७. वही।
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