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३९८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म उपलब्ध हैं- "जिनराज स्तुति", "तत्त्वार्थसूत्र भाषा टीका", "मेघ कुमार गीत", "श्रीपाल स्तुति", "पद बारहखड़ी" ।'
३६. अमर विजय :-इनकी अभी तक २५ रचनाएँ प्राप्त हो चुकी हैं। मुख्य इस प्रकार हैं - "भावपच्चीसी" १७०४ ई०, 'मेघकुमार चौढालिया" १७१४ ई०, "सुकुमाल चौपई", सुदर्शन चौपई", "अक्षर बत्तीसी", "उपदेश बत्तीसी" आदि उल्लेखनीय हैं।
३७. रामविजय :--ये दयासिंह के शिष्य थे। इनकी पद्य रचनाओं में "चित्रसेन पद्मावती चौपाई", "नेमिनाथ रासों", "ओसवाल रास", आबू स्तवन" आदि हैं।
३८. रूघपति :--ये विद्या निधान के शिष्य थे । १७३१ ई० से १७९१ ई० तक इनका साहित्य निर्माण काल था । मुख्य रचनाएँ--"नंदीषण चौपई", श्रीपाल चौपई', "रत्नपाल चौपई", "सुभद्रा चौपई", "छप्पयबावनी", "उपदेश बत्तीसी" एवं उपदेश रसाल बत्तीसी" आदि हैं।
३९. जयमल्ल :--( १७०८ ई०-१७९६ ई० ) ये स्थानकवासी परम्परा के कवि थे। इन्होंने अनेक रचनाएं लिखीं । इनकी ७१ रचनाएँ "जयवाणी" नाम से संकलित है। इसके अतिरिक्त विभिन्न भण्डारों में इनकी कई रचनाएं हैं। इनकी मुख्य रचनाएं इस प्रकार हैं। १. चन्दन बाला को सज्झाय, २. मृगलोढा की कथा, ३. श्रीमतीजीनी ढाल, ४. मल्लिनाथ चरित, ५. अंजनारो रास, ६. पाँच पांडवचरित, ७. कलकली की ढाल, ८. नंदन मनिहार, ९. क्रोध की सज्झाय, १०. आनन्द श्राधक, ११. सोलहसती की सज्झाय व चौपई, १२. अजितनाथ स्तवन, १३. दुर्लभ मनुष्य की सज्झाय, १४. रावण विभीषण संवाद, १५. इलायची पुत्र को चोढालियो, १६. नव तत्त्व की ढाल, १७. नवनियाणा की ढालो, १८. दानशील तपभावना सज्झाय, १९. मिथ्या उपदेश निषेध सज्झाय, २० लघु साधु वंदना, २१. वज्र पुरन्दर चौढालिया, २२. कुंडरीक पुंडरीक चौढालिया, २३. सुरपिता का दोहा, २४. रोहिणी, २५. अंबड संन्यासी, २६. कर्मफल पद ।
४०. कुशलोजी :--( १७१० ई०-१७८३ ई० ) इन्होंने स्तवन व उपदेशी पदों
१. राजैसा, पृ० २१९ । २. वही, पृ० १७९ । ३. वही । ४. वही । ५. सन्मति ज्ञानपीठ आगरा से प्रकाशित । ६. हस्तलिखित प्रतियाँ विनयचन्द ज्ञान भण्डार लाल भवन जयपुर में ।
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