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३९६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
१९. यशोवर्द्धन-इनके द्वारा रचित "रत्नहास रास", "चंदन मलयगिरिरास", "जंबूस्वामीरास' एवं “विद्या विलास" रास प्राप्त हुये हैं।'
२०. विनय चंद्र महोपाध्याय-ये ज्ञानतिलक के शिष्य थे। इनकी मुख्य रचनाएँ "उत्तम कुमार रास", "बीसी", "चौबीसी", "एकादश अंग सज्झाय" १६९८ ई० तथा "शत्रुजय रास" १६९८ ई० हैं ।।
२१. विवेक सिद्धि-ये लावण्य सिद्धि की शिष्या थीं। इन्होंने "विमल-सिद्धि-गुरुणी गीतम' की रचना की।
२२. विद्या सिद्धि-इन्होंने १६४२ ई० में “गुरुणी-गीतम" की रचना की।
२३. देवेन्द्र–इन्होंने १६२६ ई० में महुआ नगर में "यशोधर चरित" की रचना की।
२४. कल्याण कोति-ये देवेन्द्र कीर्ति के शिष्य थे। इनकी रचनाएँ, “चारुदत्त चरित्र" १६३५ ई०, “पार्श्वनाथ रासो" १६४० ई०, "श्रेणिक प्रबंध" १६४८ ई०, "बधावा" आदि हैं।
२५. वर्धमान कवि-इन्होंने १६०८ ई० में महावीर पर एक रास की रचना की।
२६. भट्टारक वीरचन्द्र-ये भट्टारक लक्ष्मीचंद्र के शिष्य व प्रकाण्ड विद्वान् थे। अब तक इनकी ८ रचनाएँ उपलब्ध हैं-“वीर विलास फाग", "नेमिनाथ रास" १६१६ ई०, “सीमंधर स्वामो गोत", "संबोध सत्ताणु", "जिन आंतरा", "बाहुबलि वेलि", "जंबूस्वामी बेलि", "चित्तनिरोध कथा" ।'
२७. टोकम :- ये ढूढाढ़ प्रदेश के निवासी थे । इन्होंने १६५५ ई० में "चतुर्दशी चौपई" की रचना को ।
१. नाहटा, राजैमा, पृ० १७१ २. वही। ३. जैसरा, पृ० २४८ । ४. वही । ५. राजैसा, २१०। १. वही। ७. वही। ८. वही। ९. वही, पृ० २११ ।
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