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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३९५ १०. जयरंग--( जैतसी ) इनकी १६४३ ई० से १६८२ ई० तक की रचनाएँ मिलती हैं। मुख्य रचनाएँ “अमरसेन वयरसेन चौपई", "दशवैकालिक गीत" १६५० ई०, "कयवन्ना रास" १६६४ ई० आदि हैं।
११. महिमोदय---इन्होंने १६६५ ई० में "श्रीपाल रास" रचा।
१२. सुमतिरंग-१७वीं शताब्दी में इन्होंने कई आध्यात्मिक ग्रन्थों का राजस्थानी में अनुवाद किया। इनकी प्रमुख रचनाएँ-"ज्ञानकला चौपई', "योगशास्त्र चौपई", "हरिकेसी संधि", "चौबीस जिन सवैया" आदि हैं ।
१३. लाभवर्द्धन-ये जिनहर्ष के गुरुभ्राता थे। अब तक इनकी ११ रचनाएँ प्राप्त हुई हैं, जिनमें “लीलावती रास' १६७१ ई०, "विक्रमपंचदण्ड चौपई" १६७६ ई०, "छंदोवतंश', "धर्मबुद्धि-पाप बुद्धि चौपई" आदि महत्त्वपूर्ण हैं ।।
१४. कवि उदयराज-ये जोधपुर नरेश उदयसिंह के समकालीन थे। इन्होंने "मंजन छत्तीसी" व "गुण बावनी" को रचना की। इन्होंने बीकानेर के राजा राजसिंह के आग्रह पर १६०३ ई० में "राजनीति दोहे" की रचना की।५
१५. विद्याकुशल-इन्होंने राजस्थानी भाषा में "जैन रामायण" की रचना की।
१६. चारित्र धर्म-इन्होंने भी स्थानीय भाषा में "जैन रामायण' की कृति सजित की।
१७. धर्मवर्द्धन-ये उत्कृष्ट कवि थे। इनकी मुख्य रचनाएँ, "श्रेणिक चोपई" १६६२ ई०, “अमरसेन वयरसेन चौपई" १६६८ ई०, 'सुरसुन्दरि रास" १६७९ ई० और "शीलरास" आदि हैं।'
१८. कुशलधीर-ये वाचक कल्याणलाभ के शिष्य थे । इनकी मुख्य रचनाएँ, "कृष्णवेलि बालावबोध" १६३९ ई०, “शीलवतीरास" १६६५ ई०, 'लीलावती रास" १६७१ ई० एवं 'भोज चौपई" आदि है।
१. नाहटा, राजैसा, पृ० १७८ । २. वही। ३. वही। ४. वही। ५. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास पृ० १३२ । ६. वही। ७. प्रशस्ति संग्रह, ५, क्र० ४ । ८. वही। ९. नाहटा, राजैसा, पृ० १७९ ।
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