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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३९३
(क) पद्य साहित्य :
१. महोपाध्याय समय सुन्दर - ये राजस्थानी साहित्य के सबसे बड़े गीतकार एवं कवि के रूप में उल्लेखनीय हैं । राजस्थानी गद्य-पद्य में इनकी सैकड़ों रचनाएं उपलब्ध है । सीता-राम चौपाई" नामक राजस्थानी जैन रामायण की एक ढाल इन्होंने सांचौर में बनाई थी । इनकी ५६३ रचनाएँ “समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि" में प्रकाशित हो चुकी हैं। अन्य प्रमुख रचनाएं "संबप्रद्युम्न चौपई", "मृगावती रास" १६११ ई०, "प्रियमेलक रास” १६१५ ई०, "शत्रुंजय रास", " स्थूलिभद्ररास", "चातुर्मासिक पर्व कथा", "कालकाचार्य कथा" आदि हैं । "
२. गुणविनय - ये जयसोम के शिष्य थे । इनका रचनाकाल रहा । इनकी रचनाएँ इस प्रकार है - " कवयन्नासंधि ", " कलावती प्रबन्ध", "जीवस्वरूप चीपई", " नलदमयन्ती रास" आदि ।
३. भुवनकीकत - इनकी १६१० ई० से १६४९ ई० तक की रचनाएँ मिलती हैं, जिनमें " भरत बाहुबलि चौपई", "गज सुकमाल चौपई", "अजन्ना सुन्दरी रास " के नाम उल्लेखनीय हैं ।
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१६१९ ई० तक रास", "अंजना
४. लावण्य कोर्ति- ये खरतरगच्छीय ज्ञान विलास के शिष्य थे । १७वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध इन्होंने "रामकृष्ण चौपई" की रचना की ।
५. लाभोदय - ये खरतरगच्छीय भुवनकीर्ति के शिष्य थे । इनके द्वारा रचित "कयवन्ना रास" महत्वपूर्ण कृति है ।"
६. गुण नन्दन - इनके द्वारा रचित "इलापुत्र रास" महत्वपूर्ण कृति है ।
७. कविवर जिनहषं -- ये खरतरगच्छीय शांतिहर्ष के शिष्य थे । इनकी समस्त कृतियों का परिमाण एक लाख श्लोकों के लगभग है । इनके वृहद् रासों की संख्या लगभग ५०-६० है । १६४७ ई० से १६७९ ई० तक की कालावधि इन्होंने राजस्थान में व्यतीत की। इस अवधि की समस्त रचनाएं मारवाड़ प्रदेश में रचित हैं । इनके बड़ेबड़े ग्रन्थ इस प्रकार हैं- " चंदनमलयागिरि चौपई" १६४७ ई०, “विद्याविलास रास " १६५४ ई०, "मंगलकलश चौपई" १६५७ ई०, " मत्स्योदर रास” १६६१ ई०, " शीलनववाड़ सम्यक् ” १६७२ ई०, " नंद बहत्तरी" १६५७ ई०, "गजसुकुमाल चौपई" १. राजैसा, पृ० १७५ ।
२. जैसरा, पृ० २४२ । ३. वही ।
४. वही ।
५. वही ।
६.
वही ।
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