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३९० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म "पंचाख्यान", "चंद्रप्रभा व्याकरण" १७०० ई०, “हेमशब्द चौद्रका", "हेमशब्द प्रक्रिया", "चिंतामणि परीक्षा", "युक्ति प्रबोध", "मेघ महोदय वर्ण प्रबोध", "हस्तसंजीवन", "उदयदीपिका", "वीसायंत्र विधि", "मातृकप्रसाद" १६७० ई०, "अहंद्गीता", "भविष्य दत्त कथा", "पंचमी कथा", "रमल शास्त्र", "प्रश्न सुन्दरी", "पंचतीर्थी स्तुति", "भक्तामर वृत्ति" आदि ।'
४३. धर्मवर्द्धन-( १६४३ ई०-१७१७ ई० ) इनका जन्मनाम धर्मसी था एवं विजय हर्ष के शिष्य थे । ये खरतरगच्छीय थे । इन्होंने 'वीर भक्तामर" स्वोपज्ञ टीका सहित अनेक स्तोत्र रचे ।२
४४. महोपाध्याय रामविजय-( १६७७ ई०-१७७८ ई०) ये खतरगच्छीय क्षेमकीर्ति शाखा के एवं दयासिंह के शिष्य थे। इनका कार्यक्षेत्र जोधपुर, बीकानेर रहा । इनकी प्रमुख रचनाएँ-"गौतमीयमहाकाव्य" १७५० ई०, "गुणमाला प्रकरण", "सिद्धांतचंद्रिका टीका", "साध्वाचार षटत्रिशिका", "मुहूर्तमणिमाला" १७४४ ई०, "षड्भाषामय पत्र" १७३० ई०, आदि हैं ।
४५. महिमोदय-ये खरतरगच्छीय मतिहंस के शिष्य, १८वीं शताब्दी में हुए । इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान रहा । ये ज्योतिष शास्त्र के विद्वान् थे। इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-"खेटसिद्धि", "जन्मपत्री पद्धति", 'ज्योतिषरत्नाकर" १६६५ ई०, "पंचांगानयन विधि" १६६५ ई०, "प्रेमज्योति" १६६६ ई०, “षट्पंचाशिका वृत्ति बालावबोध" आदि ।
४६. यशस्वत्सागर-इनका समय १८वीं शताब्दी रहा। ये खरतर गच्छीय क्षेमकीति शाखा एवं लक्ष्मीकीति के शिष्य थे। इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान रहा । इनकी प्रमुख रचनाएँ-"कल्पसूत्र टीका", "उत्तराध्ययन सूत्र टीका", "कालिकाचार्य कथा", "कुमारसंभव टीका", "मातृकाधर्मोपदेश स्वोपज्ञ टीका सह", "संसारदावा पाद पूात्मक", "यशोराजिराज पद्धति", "पार्श्वनाथ स्त्रोत्र" आदि ।
४७. पुण्यशील गणो-ये रामविजय के शिष्य थे। इनके द्वारा रचित जयदेव के गीत गोविंद की पद्धति पर "चतुर्विंशति जिन स्तवनानि स्वोपज्ञ टीका सह" और "ज्ञानानंद प्रकाश" प्राप्त हैं। १. राजैसा, पृ०७०। २. वही। ३. वही, पृ०७१ । ४. वही, पृ० ७०। ५. जैसास, पृ० ६५६ । ६. राभा, ३, अंक २।
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