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________________ जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३८९ ३४. ज्ञानमेरु - खरतरगच्छीय इन साधु ने १६१० ई० में डीडवाना में " सारस्वतानुवृत्यव बोधक" की रचना की ।" ३५. उदयचन्द्र- ये भी खरतरगच्छीय थे । इन्होंने १६७४ ई० में बीकानेर में "पांडित्य दर्पण " सृजित किया । ३६. समयमाणिक्य — ये भी खरतरगच्छ के थे। इन्होंने १६८९ ई० में जाबालि - पुर में "रसिकप्रिया संस्कृत टोका" को रचना की । * ३७. कुशलधीर - खरतरगच्छ से सम्बन्धित इन मुनि ने १६६७ ई० जोधपुर में "रसिकप्रिया" टीका लिखी । ४ ३८. शिवचन्द-ये खरतरगच्छीय थे । १६४२ ई० में अलवर में इन्होंने "विदग्धमुखमंडनटीका" लिखी ।" ३९. कीर्तिवर्द्धन - ये भी खरतरगच्छीय थे। इन्होंने १७वीं शताब्दी में मेड़ता में 'जन्मप्रकाशिका ज्योतिष" की रचना की । "" ४०. धनराज — ये अंचलगच्छ के थे । इन्होंने १६३५ ई० में पद्मावती पट्टन में "महादेवी दीपिका" की रचना की । ४१. भानुचंद्र गणी - ये तपागच्छ के थे । १७वीं शताब्दी में सिरोही में इन्होंने " बसन्तराज शकुन टीका" रची।" ४२. मेघविजयोपाध्याय - ( १६२८ ई०-१७०३ ) ये तपागच्छीय एवं कृपाविजय के शिष्य थे। इनका कार्यक्षेत्र गुजराज एवं राजस्थान रहा । ये बहुमुखी प्रतिभासंपन्न विशिष्ट विद्वान् थे । इनकी ३८ कृतियां प्राप्त हैं, जिनमें निम्न प्रमुख हैं- "सप्तसंधान महाकाव्य" १७०३ ई० " दिग्विजय महाकाव्य", "शांतिनाथ चरित्र" ( नैषध पाद पूर्ति ), "देवानन्द महाकाव्य " ( माघ पाद पूर्ति), “किरात समस्या पूर्ति", "मेघेवूत समस्या लेख", "लघुत्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र", "भविष्य दत्त चरित्र", J १. राजेसा, पृ० ७४-८२ । २. वही । ३. वही । ४. वही । ५. अरावली, १, क्र० १२ । ६. राजैसा, ७४.८२ । ७. राभा, ३, अंक २ । ८. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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