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________________ १८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म जैन वंशज कर्माशाह ने १५३० ई० में शत्रुञ्जय तीर्थ को स्थापना की थी।' नागभट्ट जैनाचार्य बप्पसूरि का बहुत सम्मान करता था। उनके उपदेशों से उसने कई स्थानों पर जिन मंदिर बनवाये । लगभग ८४० ई० में मिहिर भोज शासक बना, जिसने बप्पसूरि के शिष्यों नन्न्सूरि और गोविन्दसूरि के सशक्त व्यक्तित्व के प्रभाव से जैन धर्म को संरक्षण दिया। मंडोर के प्रतिहार शासकों में कक्कुक, संस्कृत का बहुत विद्वान्, पराक्रर्मा एवं जैन मत का संरक्षक शासक था। ८६१ ई० के घटियाला अभिलेख से स्पष्ट है कि उसने रोहिंसकूप एवं मण्डोर में दो कीर्ति-स्तम्भ बनवाये थे । राजोगढ़ के प्रतिहार शासकों ने भी जैन धर्म को संरक्षण प्रदान किया। अलवर क्षेत्र में, राजोगढ़ से प्राप्त ९२३ ई० की सागरनन्दि और लोकदेव द्वारा रचित प्रशस्ति में उल्लेख है कि पुलीन्द राजा के आग्रह से, धर्कट वंश के शिल्पकार सर्वदेव ने, राजोगढ़ में शांतिनाथ मन्दिर व शांतिनाथ की प्रसिद्ध नौगजा प्रतिमा का निर्माण किया था। इस प्रशस्ति में राजा सावट का भी उल्लेख है । ९६० ई० के, यहीं से प्राप्त एक अन्य लेख में, राज्यपुर (राजोगढ़) पर, प्रतिहास गुर्जर सावट के पुत्र महाराजाधिराज मथनदेव के शासन होने का उल्लेख है, जो महीपाल का सामंत था । २. चौहानों के अन्तर्गत जैन धर्म : जैन धर्म को चौहान शासकों का भी संरक्षण प्राप्त हुआ। ११०५ ई० में, पृथ्वीराज प्रथम ने, अपने शासनकाल में, रणथम्भौर दुर्ग स्थित जैन मंदिरों पर स्वर्ण कलश बनवा कर चढ़ाये थे। इस उल्लेख से उनकी जैन धर्म के प्रति उदारता ही नहीं, अपितु रणथम्भौर पर आधिपत्य भी सिद्ध होता है। इनका पुत्र एवं उत्तराधिकारी अजयराज, परम शिव भक्त होते हुये भी जैन धर्म के प्रति अत्यधिक सहिष्णु रहा । उसने नवस्थापित अजमेर नगर में जैन मंदिर निर्माण हेतु स्वीकृति प्रदान की', एवं पार्श्वनाथ मंदिर के निमित्त एक स्वर्ण कलश भेंट किया । उसने श्वेताम्बर आचार्य धर्मघोष सूरि एवं दिगम्बर १. प्राजलेस, भाग २, क्र० १२ । २. राष ए, पृ० ४१६ । ३. द हिस्ट्री ऑफ इंडिया एज टोल्ड बाई इट्स ओन पीपुल, भाग १, पृ० ३१६ । ४. जैशिस, क्र. १५, पृ० १८ । ५. एइ, ३, पृ० २६६ । ६. एरिराम्यूअ, १९३४, क्र० ४। ७. कैटेलॉग ऑफ यैन्युस्क्रिप्ट्स इन द पट्टन भण्डासं, पृ० ३१६ । ८. जनमन, वर्ष १, अंक १, पृ० ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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