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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३८५
१. पद्मराज -ये महोपाध्याय पुण्यसागर के शिष्य और संस्कृत के विद्वान् थे । इनकी जैसलमेर में १६०२ ई० में रचित "भावारिवारण पादपूर्ति टीका", फलवद्धि में १५८७ ई० में रचित "रूचितदण्ड कस्तुति टोका" आदि कई कृतियाँ प्राप्त हैं ।
२. वादी हर्ष नन्दन - ये समय सुन्दर के शिष्य थे । इन्होंने १६१४ ई० में " मध्याह्न व्याख्यान पद्धति", १६४७ ई० में " ऋषिमंडल वृत्ति", १६४८ ई० में " स्थानांगसूत्र गाथागत वृत्ति" तथा १६५४ ई० में " उत्तराध्ययन सूत्र टीका" आदि की रचना की ।"
३. गमति कीर्ति ये गुणविनय के शिष्य थे। इनकी प्रमुख रचनाएँ " दशाश्रुतस्कंध टीका" एवं " गुणकित्व षोडषिका" हैं । "
४. सहजकीर्ति - ये खरतरगच्छीय व हेमनन्दन के शिष्य थे। इनका समय १७वीं शताब्दी था इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान था । इनकी मुख्य रचनाएं इस प्रकार हैं" कल्पसूत्र टीका" १६२८ ई०, "अनेकशास्त्र समुच्चय", "गौतमकुलक टीका " १६१४ ई०, "फलवद्धि पार्श्वनाथ महात्म्य काव्य", "वैराग्यशतक", "ऋजुप्राज्ञ व्याकरण', 'सारस्वत टीका" १६२४ ई०, "सिद्ध शब्दार्णव नामकोष", "शतदल कमल बद्ध" १६२६ ई०, "पार्श्वनाथ स्तोत्र", " शब्दार्णव व्याकरण" "नामकोष" आदि ।
५. गुणरत्न --- ये खरतरगच्छीय विनय प्रमोद के शिष्य थे । ये न्याय, लक्षण व काव्य शास्त्र के प्रौढ़ विद्वान् थे । इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान में ही रहा । इनकी प्रमुख रचनाएँ - - " काव्य प्रकाश टीका", "तर्कभाषा टीका", "सारस्वत टीका" १५८४ ई०, " रघुवंश टीका", "मंगलवाद" आदि हैं । ४
६. सूरचंद -- ये खरतरगच्छीय एवं वीरकलश के शिष्य थे । ये दर्शन और साहित्य शास्त्र के प्रकांड पंडित थे तथा इनका कार्यक्षेत्र राजस्थान था । इनकी प्रमुख रचनाएँ-" स्थूलभद्र गुणमाला काव्य" १६२३ ई०, "जैनतस्वसार स्वोपज्ञ टीका सह" १६२२ ई०, "अष्टार्थी श्लोक वृत्ति", "पदैकविंशति", " शांतिलहरी", "शृंगाररसमाला" १६०२ ई०, "पंचतीर्थी श्लेषालंकार", "चित्रकाव्य", "अजित - शांति स्तवन" आदि है ।"
१. राभा ३, क्र० २ ॥
२. राजैसा, पृ० ६८ ।
३. जैग्रग्र, पृ० ५६ |
४. राजैसा, पृ० ६९ ।
५. जैसिभा, १६, अंक १ ।
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