________________
३८० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
७१. पद्मराज--पुण्य सागर के शिष्य पद्मराज ने १५९३ ई० में "अभयकुमार "चौपई", १६१० ई० में "छुल्लक ऋषि प्रबन्ध" व १६१२ ई० में "सनत कुमार रास" की रचना की।
७२. परमानन्द--पुण्य सागर के प्रशिष्य परमानन्द ने १६१८ ई० में "देवराज बच्छराज चौपई' की रचना की।
७३. कनक सोम--ये खरतरगच्छीय अमरमाणिक्य के शिष्य थे। इनका रचनाकाल १५६८ ई० से १५९८ ई० तक रहा । इनकी प्रमुख रचनाएँ-"जयतपदवेलि" १५६८ ई०, “जिनपालित जिन रक्षित रास" १५७५ ई०, "आषाढ़ भूति धमाल" १५८१ ई०, "हरिकेशी संधि" १५८३ ई०, ''आर्द्रकुमार धमाल" १५८७ ई०, "नेमिफाग" "मंगल कलश रास", "थावच्चा सुकौशल चरित्र", "कालिकाचार कथा", "जिनचंद सूरि गीत" आदि हैं ।
७४. होर कलश ( १५३८ ई०-१६०० ई० )-बीकानेर व नागौर प्रदेश में 'विचरण करने वाले इन मुनि ने 'हीर कलश जोइस हीर" नामक महत्त्वपूर्ण रचना १६०० ई० में समाप्त की। इसके अतिरिक्त इनकी अन्य रचनाएँ-'कुमति विध्वंसन" १५६० ई०, “सामायिक बत्तीस दोष पुलक" १५५८ ई०, “दिनमान पुलक", "जंबू स्वामी चरित्र" १५५९ ई०, "मुनिपति चौपाई", "सर्वजिन गणधर विनती", "राजसिंह रत्नावली सन्धि", "वृहद गुर्वावली" १५६२ ई०, “वीर परम्परा नामावली", "सोलह स्वप्न सज्झाय", "समकिस गीत", "सप्तव्यसन गीत", "खरतर आचरण गीत", "आराधन चौपाई", "मोती कपासिया संवाद", "रत्नचूड़ चौपई", "अट्ठारह नाता' आदि । इनकी लगभग ४० रचनाएँ प्राप्त हैं।४ ।
७५. हेमरत्न सूरि ( १५५९ ई०-१६१६ ई०)-ये पूर्णिमिया गच्छीय वाचक पद्मराज के शिष्य थे । इनका रचनाकाल १५४६ ई० से १५८८ ई० तक रहा। इनकी प्रमुख कृतियों में से कुछ इस प्रकार हैं-"शीलवतोरास", "महीपाल चौपई", "अमरकुमार चौपई", "गोराबादल चौपई", "लीलावती रास", "जगदम्बा बावनी" आदि ।५
७६. पदमश्री-इन्होंने १५६९ ई० में "चारूदत्त चरित्र" की रचना की।
१. जैसरा, पृ० २४२ । २. वही। ३. वही। ४. राजैसा, पृ० १७५ । ५. जैसरा, पृ० २४२। ६. जैगुक, ३, खण्ड १, पृ० ५३५ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org