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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३७९ ६६. विजयदेवसूरि--जालौर में इन्होंने "शीलरास" काव्य की रचना की, जिसकी कई हस्तलिखित प्रतियाँ प्राप्त हैं। इसकी १५५४ ई० की एक प्रति से ज्ञात होता है कि इनका रचनाकाल १६वीं शताब्दी था।'
६७. वाचक विनय समुद्र-ये बीकानेर निवासी व उपकेश गच्छीय वाचक हर्ष समुद्र के शिष्य थे। इनका रचनाकाल १५२६ ई० से १५५७ ई० तक रहा। बीकानेर में रचित इनकी कई कृतियाँ प्राप्त हैं। कुछ रचनाएँ जोधपुर व तिवरी में भी लिखी गई । इनकी प्रमुख रचनाएं-"विक्रमपंच दंड चौपाई", "अंबड चौपाई" १५४२ ई०, "मृगावती चौपाई", "चित्रसेन पद्मावती रास", "संग्राम सूरि चौपाई", "चंदन बालारास'', "नेमिराज्य श्री संधि", "इलापुत्र रास" आदि हैं।
६८. कुशल लाभ--ये खरतर गच्छीय अभय धर्म के शिष्य थे। इनका रचनाकाल १५५९ ई० से १५६७ ई० रहा । इनकी मुख्य रचनाएँ-"माधवानल', 'कामकंदला चौपई" १५५९ ई०, "ढोलामारवणी चौपई', 'तेजसार रास'' १५६६ ई०, “अगड़दत्त रास", "भवानी छंद", "नवकार छन्द", "जिनपालित जिनरक्षित संधि", "पिंगल शिरोमणी", दुर्गासात्वसि" आदि हैं ।
६९. मालदेव--ये हनुमानगढ़ निवासी और बड़गच्छीय भावदेव के शिष्य थे । इनका रचनाकाल १५५५ ई० से १५५७ ई. के आसपास था। इनकी मुख्य रचनाएँ-'पुरन्दर चौपई", 'सरसुन्दर चौपई', "भोजप्रबन्ध", "विक्रमपंच दण्ड. चौपई", "अंजना सुन्दरि चौपई", "पद्मावती पद्मश्री रास", "वीरांगद चौपई", "शील बावनी", "स्थूलिभद्र धमालि चौपई", "देवदत्त चौपई", "महावीर पंचकल्याणक स्तवन", "मृगांक पद्मावती रास" आदि २० से भी अधिक रचनाएँ उपलब्ध हैं।
७०. पुण्यसागर-ये खरतर गच्छाचार्य जिनहंस सरि के शिष्य थे। इन्होंने १५४७ ई० में जैसलमेर में "सुबाह संधि" की रचना की। इसके अतिरिक्त अन्य रचनाएँ “साघुवंदना", 'नेमिराज श्रीगीत", "मुनिमालिका", "प्रश्नोत्तर काव्य वृत्ति" १५८३ ई०, “जंबूद्वीप पण्णति वृत्ति" १५८८ ई०, “महावीर स्तवन", "आदिनाथ स्तवन", "अजितस्तवन", "जिनचंद्र सूरि अष्टकाम" आदि हैं।"
१. राजैसा, पृ० १७४ । २. वही । ३. वही। ४. वही। ५. वही।
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