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जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३७७
५३. आचार्य चंद्रकीति -- ये रत्नकीर्ति के शिष्य थे । कांकरोली, डूंगरपुर, सागवाड़ा आदि इनके साहित्य सृजन केन्द्र थे । इनकी मुख्य रचनाएँ - "सोलहकारण रास ", " जयकुमाराख्यान” १५९८ ई०, " चरित्र चूनडी", "चौरासी लाख जीव योनि बीनती ", "सिद्ध स्तवन", "सिद्ध जयमाला ", " सारस्वत व्याकरण" पर "सुबोधिका दीपिका " तथा पूजाएँ आदि हैं ।"
५४. मुनि महनन्दी – ये भट्टारक वीरचन्द के शिष्य थे । इनकी एकमात्र कृति "बारक्खरी दोहा" जिसे "दोहा पाहुड" भी कहते हैं, उपलब्ध है ।
५५. ब्रह्म रायमल्ल - ये मुनि अनन्तकीर्ति के शिष्य थे । सांगानेर, रणथम्भौर, सांभर, टोडारायसिंह, हरसौर इनके मुख्य कार्यस्थल रहे । इनकी रचनाएँ निम्न हैं
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“नेमीश्वर रास” १५५८ ई०, " हनुमंत रास" ई०, "सुदर्शन रास" १५७२ ई०, "श्रीपाल रास" १५७६ ई०, "आदित्यवार कथा", "चिंतामणि " चन्द्रगुप्त स्वप्न चौपाई", "ज्येष्ठ जिनवर कथा "3
५६. छीतर ठोलिया - ये मौजमाबाद निवासी व खंडेलवाल जातीय थे । इनकी एकमात्र रचना १५९८ ई० की "होली की कथा" है ।"
५७. ठाकुर – ये नागोर के भट्टारक विशालकीर्ति के शिष्य थे । इनकी एकमात्र कृति १५९८ ई० में रचित " शान्तिनाथ पुराण" है । इन्होंने १५९३ ई० में " महापुराण कालिका" की भी रचना की थी । "
५८. संतसुमति कोति- - अब तक इनकी निम्न परीक्षा रास" १५६८ ई०, "जिहादन्त विवाद", स्वामी विनती", " बसन्त विद्या विलास ", पद आदि ।
१५५९ ई०, " प्रद्युम्न रास" १५७१ १५७३ ई०, "भविष्य दत्तरास" जयमाल", "छियालीस ढाणा",
१. कासलीवाल, राजैसा, पृ० २०८ । २ . वही ।
३. कासलीवाल, राजैसा. पृ० २०९ । ४. कासलीवाल - शाकंभरी,
पृ० ४७ ।
५९. राजशोल—ये खरतरगच्छीय साधु हर्ष के शिष्य थे । इन्होंने चित्तौड़ में १५०६ ई० में " विक्रम चरित्र चौपाई' की रचना की । इनकी अन्य रचनाएँ 'अमरसेन वयरसेन चौपाई ” १५३७ ई०, उत्तराध्ययन छत्तीस गोत" आदि हैं ।
५. राजैसा, पृ० २०९ । ६. वही, पृ०, २११ । ७. वही, पृ० १७३ ॥
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रचनाएँ प्राप्त हुई हैं- "धर्म " शीतलनाथ गीत", "जिनवर
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