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३७४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
चौपई, धवल, विवाहला, मारू, गीत, कड़ावा, एवं पूजा संज्ञक रचनाएँ मिलती हैं, जिनकी संख्या १८ है । कुछ रचनाएँ इस प्रकार हैं- "जावड भावड रास", "चन्दन बाला चरित्र चौपई", "जम्बू स्वामी पंचभव वर्णन चौपई" " स्थूलभद्र फाग", "पार्श्वनाथ जीराउला रास", "थावच्चा कुमार भास", "श्रेणिक राजा रास", "नवकार प्रबन्ध", "पुण्य पापफल चौपई" आदि । "
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३७. संघ कलश –— इन्होंने मारवाड़ के तालवाड़ा ग्राम में १४४८ ई० में " सम्यक्त्व - रास" की रचना की । इसकी १४८९ ई० में लिखी प्रतिलिपि पाटण के भण्डार में हैं।
३८. ऋषिवर्धन सूरि - रचनास्थान के उल्लेख वाली कृतियों में अंचलगच्छीय जयकीर्ति सूरि के शिष्य ऋषिवर्धन का " नलदमयन्तीरास" उल्लेखनीय है । यह रचना १४५५ ई० में चित्तौड़ में लिखी गई । इसके अलावा इन्होंने "जिनेन्द्रातिशय पंचाशिका" भी रची।
३९. मतिशेखर – ये उपकेशगच्छीय, शीलसुन्दर के शिष्य तथा वाचक पद से विभूषित कवि थे । उपकेश गच्छ का उत्पत्ति स्थान ओसिया, राजस्थान में होने के कारण इनका रचनास्थल राजस्थान ही रहा होगा । इनकी प्रमुख रचनाएँ " घन्नारास" १४५७ ई०, “मयणरेहा रास” १४८० ई०, "बावनी", "नेमिनाथ बसन्त फुलडा फाग", "कुरगडू महर्षि रास" १४९७ ई०, "इलापुत्र चरित्र", "नेमिगीत” आदि हैं।
४०. आज्ञा सुन्दर - १४५९ ई० में जिनवर्द्धन सूरि के शिष्य आज्ञा सुन्दर रचित " त्रिद्या विलास चरित्र चौपाई" प्राप्त है ।
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४१. कल्याण चन्द्र – आचार्य कीर्ति रत्न सूरि की जीवनी के सम्बन्ध में इन्होंने ५४ पद्यों की "श्री कीर्ति रत्न सूरि विवाहलउ" की रचना की ।
४२. पद्म मन्दिर गणी - इन्होंने कीर्ति रत्न सूरि के शिष्य गुणरत्न सूरि के सम्बन्ध में एक “विवाहलउ" रचा ।
१. जैसरा, पृ० २३९ ।
२. राजैसा, पृ० १७१ । ३. वही ।
४. वही ।
५. वही, पृ० १७२ ।
६. वही । ७. वही ।
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