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________________ जैन साहित्य एवं साहित्यकार: ३७३ २९. वस्तोकवि–इन्होंने १५वीं शताब्दी में "चिहुँगति चौपाई की रचना की ।" ३०. माण्डन सेठ – इन्होंने १४४१ ई० में "सिद्धचक्र श्रीपाल रास" निबद्ध किया । २ ३१. मेघ कवि -- १४४२ ई० में इन्होंने " राणकपुर स्तवन" तथा "तीर्थमाला स्तवन" की रचना की । 3 ३२. गुणरत्न सूरि - १५वीं शताब्दी में इन्होंने " ऋषभरास" एवं " भरत बाहुबलि पवाड़ा " निबद्ध किया । ४ ३३. सोमसुन्दर गणी — इन्होंने १४२४ ई० में "नेमिनाथ नवरस फाग" तथा " स्थूलिभद्र कवित्त " की रचना की ।" ३४. जयसागर - ये दरड़ा गोत्रीय खरतरगच्छीय महोपाध्याय थे । इनका रचना - काल १५वीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध था । " विज्ञप्ति त्रिवेणी" इनकी महत्त्वपूर्ण रचना है । इसके अतिरिक्त “जिनकुशल सूरि सप्ततिका", "चौबीस जिन स्तवन", "बेअरस्वामी रास", " अष्टापद तीर्थं बावनी", "गौतम स्वामी चतुष्पादिका", "नेमिनाथ विवाहलो", " अजितनाथ विनती", "नेमिनाथ भाव पूजा स्तोत्र", "वीरप्रभु विनती", " श्रीमंधर स्वामी विनती", "शान्तिनाथ मन्दिर की प्रशस्ति" आदि इनकी छोटी-बड़ी रचनाएँ हैं । ३५. संघ विमल या शुभ शील - १४४४ ई० की "सुदर्शन श्रेष्ठि रास” नामक एक रचना उपलब्ध हुई है । इसके रचयिता के सम्बन्ध में पाठभेद पाया जाता है । मोहनलाल देसाई ने इसका रचनाकार तपागच्छीय मुनि सुन्दरसूरि के शिष्य संघ विमल या शुभशील को माना है । किन्तु बीकानेर के वृहद ज्ञान भण्डार में जो प्रति उपलब्ध हुई है, उसमें "तपागच्छी गुरु गौतम सभायें माँ श्री मुनि पर "चन्द्रगच्छी गौतम सभायें माँ श्री चन्द्रप्रभ सूरि" पाठ मिलता है । सुन्दर सूरि पू०" के स्थान ३६. कवि वर देपाल - इनका रचनाकाल १४४४ ई० से १४७७ ई० रहा । इनकी रचनाओं में तत्कालीन अनेक रचना प्रकारों का उपयोग हुआ है । रास, चूड, १. नाहटा, राजैसा, पृ० १६९ । २ . वही । ३. वही । ४. वही । ५. वही । ६. जैसरा, पृ० २३९ । ७. वही । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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