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३७२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
१८. शालिभद्र सूरि द्वितीय-१३५३ ई० में पूर्णिमा गच्छ के इन आचार्य ने नादउद्री में देवचन्द्र के अनुरोध पर “पाँचपाँडवरास" की रचना की।
१९. विनयप्रभ-१३५५ ई० में इन्होंने “गौतम स्वामी रास" को छंदोबद्ध किया। राजस्थान के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में इसकी कई प्रतिलिपियाँ हैं ।
२०. श्रावक विद्धणु-ये जिनोदय सूरि के शिष्य थे। इन्होंने १३६६ ई० में "ज्ञानपंचमी चौपाई" नामक रचना ५४८ पद्यों में रची।
२१. मेरुनन्दन गणी-१३७५ ई० में इन्होंने "जिनोदय सूरि गच्छनायक विवाहलऊ' की रचना की।
२२. साषु हंस-१३९८ ई० में इन्होंने २२२ पद्यों में "शालिभद्ररास" का निर्माण किया ।"
२३. जयशेखर सूरि-१४ शताब्दी में ही इन्होंने “त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध" नामक रूपक काव्य लिखा।
२४. मुनि ज्ञान कलश-इन्होंने १३५८ ई० में "जिनोदय सूरि पट्टाभिषेक रास" की रचना की।
२५. हलराज कवि-इन्होंने १३५२ ई० में "स्थूलिभद्र फाग" की रचना आघाट नगर में की।
२६. चाप कवि-इन्होंने १३३८ ई० में "भट्टारक देवसुन्दर सूरि रास" की ५५ पद्यों की रचना लिखी।
२७. कवि साधारू-इन्होंने १३५४ ई० में "प्रद्युम्न चरित्र" लिखा ।१०
२८. हीरानन्द सूरि-इन्होंने १४२७ ई० में "वस्तुपाल तेजपाल रास", १४२८ ई० में "विद्या विलास पवाड़ा" तथा १४३८ ई० में “कलिकाल रास" की रचना की।
१. यतीन्द्र सूरि अभि० ग्रं॰, पृ० १२१-१२७ । २. नाहटा, राजैसा, पृ० १६९ । ३. वही। ४. वही। ५. वही। ६. वही । ७. वही। ८. वही। ९. वही। १०. मुहस्मृग, पृ० ७८९ । ११. नाहटा, राजैसा, पृ० १६९ ।
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