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३७ . : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
संस्कृत अभिलेख : ___ इस काल में संस्कृत भाषा में जैनाचार्यों द्वारा कई उत्कृष्ट अभिलेख लिखे गये । रणकपुर का १४३९ ई० का लेख, आबू के १२३० ई०, १२९३ ई० और १३२१ ई० के लेख, जैसलमेर के १४१६ ई० और १४३७ ई० के अभिलेख तथा केकिन्द का १६०९ ई० का लेख अच्छी संस्कृत में निबद्ध अभिलेखों के सुन्दर उदाहरण हैं । (४) राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं साहित्यकार:
१३वीं शताब्दी तक राजस्थानी भाषा विकास के कई सोपान तय कर चुकी थी। अतः १६वीं शताब्दी तक इस भाषा में विपुल साहित्य सृजित हुआ ।
(क) पद्य साहित्य :
१. कवि असगु-- इन्होंने १२०० ई० में सहजिगपुर के पार्श्वनाथ जिनालय में "जीव दयारास" निबद्ध किया ।' ये जालौर निवासी थे। जैसलमेर के वृहद ज्ञान भण्डार में संग्रहीत "चन्दनबालारास" भी इनके द्वारा १२०० ई० के आसपास ही रची गई ।२
२. धर्म-इनकी संवतोल्लेख वाली "जम्बूस्वामीरास' नामक रचना १२०९ ई० में लिखी गई। ये महेन्द्र सूरि के शिष्य थे । इनकी दूसरी कृति "सुभद्रासती चतुपदिका है।
३. अभयतिलकगणी-इन्होंने १२५० ई० में भीमपल्ली के महावीर जिनालय की प्रतिष्ठा के समय २१ पद्यों का “महावीर रास' निबद्ध किया ।
४. लक्ष्मी तिलक उपाध्याय--इन्होंने "शांतिनाथ देवरास" नामक काव्य लिखा, जो एक ऐतिहासिक रास है। इसमें १२५६ ई० में जालौर में उदय सिंह के शासन में जिनेश्वर सूरि द्वारा शांति जिनालय की प्रतिष्ठा का उल्लेख है ।"
५. जिनप्रबोध सूरि--१२७५ ई० में इन्होंने "शालिभद्र रास' नामक ३५ पद्यों की एक सुन्दर रचना की।
६. विनयचन्द्र सूरि---इन्होंने १२८१ ई० में "बारहवतरास" लिखा। १. भारती विद्या, ३, पृ० २०१ । २. राजैसा, पृ० १६८। ३. वही। ४. वही। ५. वही। ६. वही, ७. वही, पृ० १६९ ।
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