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________________ जैन साहित्य एवं साहित्यकार : ३६९ गर्भित अराजिन स्तव स्वोपज्ञ टीका सह", "विद्वत्प्रबोध काव्य", "संघपति रूपजी वंशप्रशस्ति", "मातृकाश्लोकमाला", "चतुर्दश स्वरस्थापन वाद स्थल" आदि । टीका ग्रन्थों में "हमनाममाला शेष संग्रह टीका", "हेमनाममाला शिलोंछ टीका", "हमलिंगानुशासन दुर्गप्रद प्रबोध टीका", "हैमनिघंटु शेष टीका", "अभिधान चिंतामणि नाममाला टीका", "सिद्धहेमशब्दानुशासन टीका", "विदग्ध मुख मंडन टीका" आदि । इन्होंने "अभिधान नाममाला" पर "सारोद्धार वृत्ति" की भी रचना की। ७०. देवविजय-इन्होंने १५९५ ई० में श्रीमाल में “देवरामायण" की रचना की। ७१. जयकीति--सम्भवतः ये चित्तौड़ से सम्बन्धित थे। इन्होंने “छन्दोनुशासन" की रचना संस्कृत में की।४ ७२. ब्रह्म जिनवास-ये संस्कृत एवं राजस्थानी के विद्वान् थे। ये भट्टारक सकलकीति के भाई और शिष्य थे । इन्होंने संस्कृत में पुराण एवं चरित्र ग्रन्थ लिखे । इनकी प्रमुख संस्कृत रचनाएँ निम्न हैं--"पांडवपुराण", "हरिवंशपुराण", "पद्मपुराण', "जम्बूस्वामी चरित्र", "व्रतकथाकोष", "आदिनाथ पुराण", "श्रेणिक चरित्र", "यशोधर चरित्र"", "जम्बूद्वीपपट", "जम्बूद्वीप अकृत्रिम चैत्यालय पूजा"", "दशलक्षण व्रत पूजा", "दशलक्षण व्रतोद्यापन", "देवपूजा"१०, “पूजापाठ संग्रह"११, “पूजापाठ विधान", "हनुमच्चरित्र'१२, "बारह सौ चौबीसी व्रतोद्यापन",१३ "रोहिणी व्रत पूजा"१४ आदि । १. राभा, ३, क्र० २ । २. जैग्रग्र, पृ० ५०। ३. राभा, ३, क्र० २। ४. जैग्रनस, क्र० ६० । ५. रोजैशाग्रसू, ५, पृ० १२५० । ६. वही, पृ० २३३ । ७. वही, पृ० १२३१ । ८. वही। ९. वही, पृ० १२३७ । १०. वही, पृ० १२३९ । ११. वही, पृ० १२५२ । १२. वही, पृ० १२९६ । १३. वही, पृ० १२५९ । १४. वही, पृ० १२७२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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