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________________ साहित्य एवं साहित्यकार : ३६७ ५८. हेमरत्न - इन्होंने १५८१ ई० में बीकानेर में "भावप्रदीप" की रचना निबद्ध की ।" ५९. कनकसोम — इन्होंने १५७५ ई० में जैसलमेर में "कालिकाचार्य कथा" संस्कृत में लिखी । २ ६०. दयासागर — ये खरतरगच्छीय मुनि थे । इन्होंने १५६३ ई० में जालौर में " मदन नरिद चरित्र" की रचना लिखी । ३ ६१. देवविजयगणो ये तपागच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने १५९५ ई० में श्रीमालपुर में 'रामचरित" को रचना की । ६२. आज्ञासुन्दर ये खरतरगच्छीय साधु थे । इन्होंने १५०५ ई० में काडीउपुर में " शीलवती कथा" की रचना की ।" ६३. मेरुसुन्दरोपाध्याय - ये भो खरतरगच्छीय थे । इन्होंने १६वीं शताब्दी में जैसलमेर में " जैसलमेर पाश्वं जिन स्तोत्र" की रचना की । ६४. ज्ञानविमलोपाध्याय - खरतरगच्छ से सम्बन्धित इन आचार्य ने १५९७ ई० में बीकानेर में " शब्द प्रबन्ध टोका" की रचना की थी । ६५. भक्ति लाभोपाध्याय - ये खरतरगच्छ से सम्बन्धित थे । इन्होंने १५१९ ई० में बीकानेर में "लघुजातक टीका" की रचना की ।" ६६. जिनराज सरिये खरतरगच्छीय जिनसिंह सूरि के शिष्य थे व मूल रूप से बोहिथरा गोत्र के थे । ये नव्य न्याय और साहित्य शास्त्र के प्रकांड पंडित थे । इनको प्रमुख रचनाएँ - " नैषधीय महाकाव्य जैन राजी टीका" और "भगवती सूत्र टीका हैं । " ६७. महोपाध्याय समयसुन्दर ( १५५३ ई० – १६४६ ई० ) – ये खरतरगच्छीय सकलचन्द्रगणो के शिष्य थे । ये सांचौर निवासी व प्राग्वाट जातीय थे। इनका कार्यक्षेत्र १. राजैसा, पृ० ७४-८२ । २. वही । ३. वही । ४. वही । ५. वही । ६. वही । ७. वही । ८. राभा, ३, क्र० २ ९. राजैसा, पृ० ६८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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