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अध्याय द्वितीय
जैनधर्म की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जैन धर्म की परम्पराओं, प्राचीन अभिलेखों और साहित्यिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि राजस्थान प्रदेश में जैन धर्म व्यापक रूप से प्रचलित था । ७वीं, ८वीं शताब्दी से, राजपूतों के उत्कर्ष से ही, इस भूप्रदेश में जैन मत बहुत समृद्ध और लोकप्रिय हुआ यद्यपि किसी राजपूत शासन के जैन मतावलम्बी होने का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, लेकिन किसी जैन मत विरोधी शासक का उल्लेख भी प्राप्त नहीं होता है । मूलतः शैव या वैष्णव धर्मी होते हुये भी, विभिन्न स्थानीय राजपूत शासक धर्म - सहिष्णु और जैन मत के उदार संरक्षक थे । स्थानीय शासन में जैन मतावलम्बियों को प्रतिष्ठित पद प्राप्त हुये । उनके पादविहार तथा विद्वान जैनाचार्यों के उपदेशों द्वारा, जैन मत निरंतर प्रचारित, प्रसारित होता रहा । पदाधिकारियों, व्यापारियों तथा धर्माचार्यों के प्रभाव से राजकीय समर्थन पाकर अनेकों मंदिर निर्मित हुये, असंख्य मूर्तियों के प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न हुये तथा विभिन्न भाषाओं में विपुल साहित्य
,
सृजित हुआ ।
पुष्टि होती है कि ११वीं
अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाणों से इस तथ्य की शताब्दी के पश्चात् से सतत हिंसा, युद्ध, लूटपाट, आदि के बावजूद भी अहिंसक जैन धर्म इस प्रदेश में निरन्तर शान्ति की वृष्टि करता रहा और विद्वान जैनाचार्य अपने धर्मोपदेशों से जन-जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक उन्नयन में लगे रहे। अनेक नई जैन जातियाँ एवं गोत्र निर्मित हुये । जैन संघ भी मध्यकाल में अलगाव की भावना से ग्रस्त होकर कई खण्डों में विभक्त हो गये, किन्तु इस टूटन से जैन धर्म के मतानुयायियों की संख्या में कमी नहीं हुई, अपितु जैन धर्म को जीवंत बनाये रखने की प्रतिस्पर्धा स्वरूप, अनेक नये मन्दिर निर्मित हुये, आचार्यों से मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करवायी गई तथा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ मुनियों को भेंट स्वरूप दी गई। जैनाचार्यों के प्रयासों से ग्रन्थ भण्डार अस्तित्व में आये, जिनमें अमूल्य साहित्य को सुरक्षित रखने के लिये, भारतीय संस्कृति, सदैव जैन धर्म के आचार्यों एवं श्रावकों को ऋणी रहेगी। जैनाचार्यों, जैन राजनीतिज्ञों एवं जैन श्रेष्ठी वर्ग के प्रभाव से राजपूत शासक ही नहीं, अपितु कति - पय मुगल शासक, जैसे अकबर, जहाँगीर आदि भी इस धर्म के प्रति सहिष्णु रहे और समय-समय पर जैनाचार्यों को सम्मान देते रहे ।
(अ) पूर्व मध्यकाल :
राजस्थान के प्रारम्भिक राजपूत वंशों में मारवाड़ के प्रतिहार, मेवाड़ के गुहिल, शाकम्भरी के चौहान, भीनमाल तथा आबू के चावड़ा, सिरोही, जालौर मालवा क
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